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गंगा निर्मलीकरण : 30 साल में कई कोशिशें (आईएएनएस विशेष)

नई दिल्ली, 10 अगस्त (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार द्वारा गंगा निर्मलीकरण योजना पर पेश किए गए दावों की जांच करने पर पता चला कि गंगा की स्वच्छता के लिए अवजल प्रसंस्करण निर्माण की बड़ी-बड़ी योजनाओं पर पहले भी काम हो चुका है। कई योजनाएं विफल रही हैं।

नई दिल्ली, 10 अगस्त (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार द्वारा गंगा निर्मलीकरण योजना पर पेश किए गए दावों की जांच करने पर पता चला कि गंगा की स्वच्छता के लिए अवजल प्रसंस्करण निर्माण की बड़ी-बड़ी योजनाओं पर पहले भी काम हो चुका है। कई योजनाएं विफल रही हैं।

सरकार ने अपनी उपलब्धि में बताया कि अत्यधिक प्रदूषण करने वाली 764 औद्योगिक इकाइयों की पहचान कर ली गई है। वास्तव में यह काम 2011 से 2013 के बीच ही कर लिया गया था।

हमने अपने निष्कर्ष जल संसाधन, नदी विकास और गंगा निर्मलीकरण मंत्रालय को टिप्पणी के लिए ई-मेल से भेजे। इसका कोई जवाब नहीं आया है।

1. गंगा निर्मलीकरण कार्यक्रम शुरू : गत 30 साल से कुछ लंबी अवधि में भी कई बार ऐसी योजनाएं शुरू की गई हैं।

दावा : नमामि गंगे शुरू। 2019-20 तक इस पर 20 हजार करोड़ रुपये होंगे खर्च।

जांच से पता चला : गंगा और इसकी सहायक नदियों की सफाई के लिए सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं में यह सिर्फ एक अगली कड़ी है।

1985 में गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) चरण-1 शुरू किया गया था। जीएपी चरण-2 1993 और उसके बाद कई चरणों में मंजूर की गई। इस चरण में गंगा की सहायक नदियों -यमुना, गोमती, दामोदर और महानंदा- को भी शमिल कर लिया गया। 1995 में इसमें अन्य नदियों को भी शामिल कर इसे राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना बना दिया गया।

2009 में गंगा राष्ट्रीय नदी बना दी गई और गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) गठित की गई। केंद्र सरकार ने 974 करोड़ रुपये जारी की, जिसमें से फरवरी 2014 तक 939 करोड़ रुपये खर्च हुए।

यमुना एक्शन प्लान (वाईएपी) के दो चरणों में केंद्र ने 1,070 करोड़ रुपये जारी किए। फरवरी 2014 तक 1,511 करोड़ रुपये खर्च हुए।

एनजीआरबीए के तहत गंगा से संबंधित राज्यों के 46 शहरों में 3,546 करोड़ रुपये की 61 योजनाओं को मंजूरी दी गई। वाईएपी के तीसरे चरण में 1,656 करोड़ रुपये की योजनाएं मंजूर हुई थी।

2. अवजल प्रसंस्करण परियोजनाएं। 2014-115 में 67.823 करोड़ लीटर रोजाना क्षमता वाली परियोजनाओं को मंजूरी।

दावा : 4,975 करोड़ रुपये खर्च की 76 परियोजनाओं को मंजूरी। क्षमता 67.823 करोड़ लीटर रोजाना।

जांच से पता चला : जीएपी के दो चरणों में 524 परियोजनाएं पूरी हो चुकी। 109.2 करोड़ लीटर रोजाना की क्षमता स्थापित। 83 अवजल प्रसंस्करण संयंत्र (एसटीपी) मंजूर, जिसमें 69 का काम पूर्ण।

वाईएपी के दो चरणों में 297 योजनाएं पूरी और 94.2 करोड़ लीटर रोजाना क्षमता वाले एसटीपी स्थापित। इसके तहत 41 एसटीपी निर्मित और दिल्ली में एक एसटीपी का जीर्णोद्धार।

एनजीआरबीए के तहत गंगा नदी वाले राज्यों के 46 शहरों में 3,547 करोड़ रुपये की 61 योजनाएं मंजूर। 24 शहरों की मंजूर योजनाओं से प्रसंस्करण क्षमता 56.6 करोड़ लीटर रोजाना बढ़ेगी।

वाईएपी चरण-3 के तहत दिल्ली के ओखला, कोंडली और रिठाला में 81.4 करोड़ लीटर रोजाना क्षमता वाले सात एसटीपी के आधुनिकीकरण परियोजनाएं मंजूर की। इसके अलावे ओखला में 13.6 करोड़ लीटर रोजाना क्षमता वाले एक एसटीपी निर्माण को भी मंजूरी दी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, गंगा नदी के किनारे बसे प्रथम और दूसरी श्रेणी के शहरों में रोजाना करीब 272.3 करोड़ लीटर अवजल पैदा होता है। इन शहरों में अब तक 120.9 करोड़ लीटर प्रति दिन की प्रसंस्करण क्षमता हासिल हुई है।

3. अत्यधिक प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों की पहचान। यह पहले ही हो चुका है।

दावा : उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 764 इकाइयों की पहचान।

जांच से पता चला : सीपीसीबी ने अगस्त 2011 से अगस्त 2013 के बीच गंगा तट पर बसे अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों का जायजा लिया था। उसने पांच राज्यों में गंगा और उसकी प्रमुख सहायक नदियों के तट पर स्थित 764 इकाइयों की पहचान की थी।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)

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