चीन के विश्लेषकों के मुताबिक, यह एक भड़काऊ आरोप है। अमेरिका, चीन पर राजनैतिक हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल करता है जबकि उसका खुद का रिकार्ड मानवाधिकार के मामले में पाक-साफ नहीं है। इसलिए यह निराशाजनक है कि वे सुविधाजनक ढंग से इस दिशा में चीन की प्रगति का उल्लेख करना भूल जाते हैं।
मानवाधिकार परिषद की यह बैठक संयोग से चीन में सालाना संसदीय सत्र के समानांतर हुई, जिससे यह जाहिर होता है कि ऐसे आपत्तियां क्यों उठाई गईं। चीनी विश्लेषकों का मानना है कि वे परिषद की बैठक में चीन की बुराई में इतने व्यस्त थे कि उन्हें गरीबी हटाने, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में समानता या न्यायिक सुधार की सकारात्मक खबरों को सुनने का वक्त नहीं था।
इन विश्लेषकों का मानना है कि उसने जिन सफलताओं को हासिल किया है, उसे विश्व के स्वघोषित ‘मानवाधिकार के संरक्षक ‘ स्वीकार करने को अनिच्छुक लगते हैं। उनका यह रुख पूर्वाग्रह से प्रेरित है जो उनके राजनीतिक हितों का संरक्षण करता है।
चीन मानवाधिकार को लेकर सवाल उठाने पर उल्टे अमेरिका पर सवाल उठाता है। उसका कहना है कि अमेरिका में कैदियों के साथ की जानेवाली बर्बरता, अपने ही नागरिकों के निजता में सेंध लगाना और वहां गहरे पैठे रंगभेद के बारे में कई सारी बातें जगजाहिर है। इसलिए किसी देश भी राष्ट्र के लिए मानवाधिकारों के संरक्षण का कोई अंत नहीं है, खासतौर से चीन जैसे देशों के लिए जहां एक बड़ी और बहुसांस्कृतिक आबादी है।
चीन के विश्लेषकों का मानना है अमेरिका के नेतृत्व में उठाया गया यह कदम दिखाता है कि चीन के वृहद मानवाधिकार रणनीति को अस्वीकार करते हुए तुच्छ घटनाओं को खींच कर डर पैदा किया जा रहा है। यह चीन और पश्चिमी जगत के बीच व्यापक मानवाधिकारों के मुद्दे पर होने वाली वार्ता के लिए हानिकारक हो सकता है।