नई दिल्ली, 17 मार्च (आईएएनएस)। जाट को समुदाय को पिछड़ा माने जाने के केंद्र सरकार के मत पर असहमति जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को तत्कालीन मनमोहन सिंह द्वारा 4 मार्च, 2014 को जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें नौ राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत जाटों को भी आरक्षण देने की घोषणा की गई थी।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की पीठ ने कहा, “हम केंद्र सरकार के इस मत से सहमत नहीं हो सकते कि नौ राज्यों में जाट समुदाय पिछड़ा वर्ग में आता है, इसलिए केंद्र सरकार की अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) वाली सूची में उन्हें शामिल किया जाए।”
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, “राजनीतिक रूप से संगठित वर्ग, जैसे कि जाट को ओबीसी में शामिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
उल्लेखनीय है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में जाटों को लाभ देने के लिए उन्हें ओबीसी के तहत आरक्षण देने का प्रावधान किया था। तत्कालीन संप्रग सकार ने इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की अनुशंसा की अनदेखी करते हुए यह अधिसूचना जारी की थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने भी हालांकि पूर्ववर्ती सरकार के फैसले का समर्थन किया था।
पिछड़ेपन के निर्धारण पर न्यायालय ने कहा, “आरक्षण के लिए अनुमति केवल उन्हीं समुदायों को दी जाएगी जो बहुत तंग हैं। अन्य किसी भी तरह के समुदाय को आरक्षण देना राज्य के संवैधानिक कर्तव्यों का गंभीर परित्याग होगा।”
न्यायालय ने कहा, “तदनुसार अदालत उक्त अधिसूचना, जिसमें बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर जिले, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का प्रावधान है उसे रद्द करती है।”
इस अधिसूचना को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं न्यायालय में दायर की गई थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है।
न्यायालय ने आरक्षण देने की अधिसूचना जारी करने के दिन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसे समसामयिक होना चाहिए।
न्यायालय के इस फैसले पर जाट नेताओं और अन्य राजनीतिज्ञों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी।
हरियाणा के नेताओं ने कहा कि पहले वह शीर्ष अदालत के फैसले को पढ़ेंगे, उसके बाद मामले पर कोई प्रतिक्रिया देंगे। उल्लेखनीय है कि हरियाणा में जाट राजनीतिक रूप से प्रभावी समुदाय है और राज्य की कुल आबादी की 25 फीसदी आबादी जाट समुदाय की है।
अपना पहला बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने मंगलवार को विधानसभा में कहा, “हमारी सरकार (हरियाणा में) सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पढ़ेगी, उसके बाद ही हम इस मामले पर कुछ कह सकेंगे।”
उन्होंने कहा कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उन लोगों को आरक्षण देने के पक्ष में है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष सुभाष बरला ने कहा कि वह फैसले को पढ़ लेने के बाद ही उस पर टिप्पणी करेंगे।
जाट आरक्षण रद्द किए जाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर राजस्थान के जाट नेताओं ने हैरानी जताई है। राज्य की कुल आबादी का 14-15 फीसदी हिस्सा जाट समुदाय के लोगों का है।
प्रमुख जाट नेता ज्ञानप्रकाश पिलानिया ने कहा, “मैं हैरान हूं। यद्यपि मैंने अभी फैसला नहीं पढ़ा है लेकिन जाट किसानों का पर्याय रहे हैं और मुझे लगता है कि किसान पिछड़े हैं और आरक्षण की पात्रता रखते हैं।”
राजस्थान पुलिस के पूर्व महानिदेशक पिलानिया ने कहा, “मुझे लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय के सामने मामले को उचित तरीके से नहीं रखा गया।”
उन्होंने कहा, “यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करे।”
राजस्थान में जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है।
राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर दूदी ने जोर देकर कहा कि राजस्थान में जाट वास्तव में पिछड़े हैं।
कांग्रेस नेता दूदी ने कहा, “वे आरक्षण के हकदार हैं। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि केंद्र सरकार को जल्द से जल्द इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए।”
इसी तरह के विचार एक अन्य जाट नेता राजाराम मील ने व्यक्त करते हुए कहा, “केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें हमारे पक्ष में हैं, और हमें आशा है कि समुदाय को जल्द ही ओबीसी का दर्जा मिल जाएगा।”
वहीं पंजाब में पंजाब जाट महासमभा ने मंगलवार को कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी।