Saturday , 4 May 2024

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जिंद पीर झूलेलाल-महान अवतारी पुरुष और सिंधियों के ईष्ट देव

images (1)भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियाँ हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर ने अवतार लेकर धर्मपरायण प्रजा की रक्षा की।कहा जाता है कि सिंध प्रांत की हिंदू जनता मुस्लिम शासक मिरख शाह के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। जनता ने इस क्रूर और अत्याचारी बादशाह से मुक्ति पाने की मंशा से सिन्धु नदी के तट पर जल के देवता वरुण देव से प्रार्थना की।

जल्द ही उनकी प्रार्थना का असर हुआ और स्वयं भगवान वरुण देव मछली पर सवार होकर प्रकट हुए और उन्होंने प्रार्थनाकर्ताओं से कहा कि जल्द ही मैं अत्याचारियों का सर्वनाश करने हेतु नसीरपुर शहर में रतनराय के घर जन्म लूँगा।भगवान झूलेलाल के रूप में वरुण देव ने ईस्वी सन्‌ 0951 अर्थात विक्रमी संवत्‌ 1007 में चैत्र माह की द्वितीया को सिंध की पवित्र भूमि पर माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया। उनका बचपन का नाम उदयचंद था, लेकिन माता देवकी उदयचंद को झूलेलाल के नाम से ही पुकारती थीं।

इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिर्ख शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई। बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहाँ पहुँचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन मिर्ख शाह की फौजी ताकत पंगु हो गई। उन्हें उदयचंद सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की।तब बादशाह ने झूलेलालजी को बंदी बना लेने के लिए एक बड़ा सैन्य बल भेजा लेकिन झूलेलालजी ने अपनी दिव्य शक्ति से बादशाह के महल पर आग का कहर बरपा दिया। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर झूलेलालजी के चरणों में गिर पड़ा।उदयचंद ने बादशाह को संदेश दिया कि शांति ही परम सत्य है।उदयचंद ने सर्वधर्म समभाव उपदेश दिया ।नये पंथ की स्थापना की जिसका नाम दरियालाल था। बड़ी संख्‍या में लोग उनके अनुयाई बने। उनका उपदेश था कि सगुण हो या निर्गुण सभी एक ही ईश्‍वर के रूप है, सभी देव ज्‍योर्तिमय और जलमय है। इसका असर यह हुआ कि मिर्ख शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया। सभी को उपदेश देकर वे वीरोचित वेशभूषा मे अश्‍व पर चढ़कर चिर प्रयाण के लिये अज्ञात स्‍थान की ओर चल दिये मार्ग मे एक स्‍थान पर त्रिशूल गाड़ा उससे पाताल का मार्ग बन गया। उसी मार्ग से झूलेलालजी पाताल लोक चले गये।

उपासक भगवान झूलेलालजी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु सभ्यता के निवासी(सिन्धी ) चैत्र मास के चन्द्रदर्शन के दिन भगवान झूलेलालजी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

जिंद पीर झूलेलाल-महान अवतारी पुरुष और सिंधियों के ईष्ट देव Reviewed by on . भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियाँ हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियाँ हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर Rating:
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