अगरतला, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) की मांगें यदि मान ली जाती हैं तो वह अपने हथियार डाल सकता है और आत्मसमर्पण कर सकता है। यह जानकारी त्रिपुरा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दी।
अगरतला, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) की मांगें यदि मान ली जाती हैं तो वह अपने हथियार डाल सकता है और आत्मसमर्पण कर सकता है। यह जानकारी त्रिपुरा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दी।
पुलिस महानिदेशक के. नागराज ने आईएएनएस से कहा कि इसी संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की एनएलएफटी के नेताओं के साथ प्रारंभिक बैठक हो चुकी है। यह बैठक दो अप्रैल को शिलांग में हुई थी।
त्रिपुरा के पुलिस प्रमुख ने कहा, “बैठक उपयोगी और सकारात्मक रही। शिलांग में कुछ रचनात्मकता ने भी काम किया।”
उन्होंने कहा, “हमें आशा है कि अगली बैठक में आत्मसमर्पण की कोई ठोस रूपरेखा सामने आ सकती है और इसके लिए हम जल्द ही बैठक की तिथि तय कर ली जाएगी। एनएलएफटी के नेताओं ने संकेत दिए हैं कि अगर उनकी मांगें पूरी हो जाती हैं तो वे समर्पण कर सकते हैं।”
नागराज ने कहा कि एनएलएफटी ने कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार के साथ बातचीत की इच्छा जताई थी। एनएलएफटी का नेतृत्व विश्वमोहन देबबर्मा करते हैं।
केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इस संबंध में राज्य सरकार की प्रतिक्रिया मांगी थी। त्रिपुरा सरकार ने केंद्र की प्रतिक्रिया का सकारात्मक जवाब दिया था।
नागराज और त्रिपुरा जनजातीय कल्याण विभाग के सचिव एल. दारलोंग इस बैठक में शामिल हुए थे। इनके अलावा खुफिया विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारी और एनएलएफटी के तीन नेता उत्पल देबबर्मा, काजल देबबर्मा और कर्ण देबबर्मा ने इस बैठक में हिस्सा लिया।
एनएलएफटी चाहता था कि बैठक मेघालय की राजधानी शिलांग में हो।
नागराज ने कहा कि यद्यपि जनजातीय आतंकवादियों ने मुख्यधारा से जुड़ने के लिए आत्मसर्पण की इच्छा जताई है लेकिन उन्होंने अपनी मांगे नहीं बताई है।
उन्होंने कहा, “हमने उनसे (एनएलएफटी नेताओं) सरकार को अपनी मांगें बताने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर अपने साथियों के साथ चर्चा करने के बाद अगली बैठक में इनका खुलासा करेंगे।”
त्रिपुरा पुलिस के एक आधिकारिक दस्तावेज के मुताबिक, एनएलएफटी का गठन मार्च, 1989 में विश्वमोहन देबबर्मा के नेतृत्व में हुआ था।
एनएलएफटी और आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) ने बांग्लादेश में अपने ठिकाने बनाए हुए हैं और वहीं पर वे प्रशिक्षण लेते हैं। त्रिपुरा बांग्लादेश के साथ 856 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।
दोनों ही आतंकवादी संगठनों को 1997 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। इनकी मांग थी कि त्रिपुरा को भारत से अलग किया जाए। लेकिन ज्यादातर एटीटीएफ कैडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया, लिहाजा यह समूह अब लगभग समाप्त ही हो चुका है।
केंद्रीय गृहमंत्रालय की रपट के मुताबिक, हाल में केंद्र सरकार और असम के पांच और मणिपुर के दो आतंकवादी संगठनों के बीच संघर्षविराम समझौता हुआ है। ये सभी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के गुट थे।
पूर्वोत्तर के इलाकों में उग्रवादियों के आत्मसमर्पण और पुनर्वास के लिए 1998 से केंद्र सरकार की एक योजना चल रही है।
इसके तहत अपने हथियार डालने और आत्मसमर्पण करने वाले प्रत्येक आतंकवादी को केंद्र सरकार डेढ़ लाख रुपये एकमुश्त अनुदान और 3,500 रुपये मासिक मानधन और प्रोत्साहन देती है।
वर्ष 2013-14 में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के राज्यों को आत्मसर्पण करने वाले उग्रवादियों के लिए मानधन के तौर पर 15.55 करोड़ रुपये जारी किए थे।