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 दुनिया के पर्यावरण की चिंता, भोपाल भूले! | dharmpath.com

Monday , 5 May 2025

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दुनिया के पर्यावरण की चिंता, भोपाल भूले!

भोपाल, 22 नवंबर (आईएएनएस)। जब सत्ता और सरकार से जुड़े लोग अपनी ब्रांडिंग में लग जाते हैं तो वे वास्तविक समस्याओं को भूल जाते हैं। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश में हो रहा है। यहां चल रही दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन समाधान की ओर’ में दुनिया के पर्यावरण और जलवायु पर तो चर्चा हो रही है, मगर पर्यावरण प्रदूषण और यूनियन कार्बाइड संयंत्र के दशकों से पड़े जहरीले कचरे की समस्या से जूझ रहे भोपाल का कोई जिक्र तक करने को तैयार नहीं है।

भोपाल, 22 नवंबर (आईएएनएस)। जब सत्ता और सरकार से जुड़े लोग अपनी ब्रांडिंग में लग जाते हैं तो वे वास्तविक समस्याओं को भूल जाते हैं। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश में हो रहा है। यहां चल रही दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन समाधान की ओर’ में दुनिया के पर्यावरण और जलवायु पर तो चर्चा हो रही है, मगर पर्यावरण प्रदूषण और यूनियन कार्बाइड संयंत्र के दशकों से पड़े जहरीले कचरे की समस्या से जूझ रहे भोपाल का कोई जिक्र तक करने को तैयार नहीं है।

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में अगले वर्ष होने वाले सिंहस्थ (कुंभ) से पहले वैचारिक सम्मेलनांे का दौर जारी है, उसी सिलसिले में राजधानी भोपाल में शनिवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हो रही है।

इस संगोष्ठी के पहले दिन आर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर सहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, भाजपा सांसद अनिल माधव दवे ने दुनिया में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जताई। साथ ही प्रदूषण के खिलाफ लड़ने पर जोर दिया।

संगोष्ठी में आए वक्ताओं ने दुनिया में बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण की राशि में होने वाले घपलों की खुलकर चर्चा की, साथ ही आह्वान किया कि इस समस्या से निदान के लिए सार्थक प्रयास आवश्यक हैं।

वक्ताओं ने लोगों को अपने तौर तरीके में बदलाव लाने और प्रदूषण के कारकों पर रोक लगाने पर जोर दिया, मगर किसी ने भी भेापाल हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड संयंत्र परिसर में जमा कचरे से फैल रहे प्रदूषण और कचरे को ठिकाने लगाने की चर्चा करना तक मुनासिब नहीं समझा।

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए लड़ाई लड़ने वाले भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडं्गी का कहना है, “भोपाल गैस हादसे की बरसी करीब है, ऐसे में जलवायु पर हो रही संगोष्ठी में भोपाल में जमा कचरे पर चर्चा होनी चाहिए थी, मगर नहीं हो रही जो दुखद है, मगर वास्तविकता यह है कि इस सरकार को गैस पीड़ितों और भोपाल से ज्यादा चिंता अपने प्रचार की है, लिहाजा वही वह कर रही है।”

भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की साधना कार्णिक प्रधान तो भाजपा के नेताओं में ग्लोबल बनने की बढ़ती भूख पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक का सारा जोर अपने को ‘ग्लोबल’ बनाने में है और वे इसके लिए अदानी व अंबानी को अपने साथ लेकर दुनिया में घूम रहे हैं। ऐसे में उन्हें भोपाल की चिंता क्यों होगी।”

राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए ‘जल जन जोड़ो’ अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह का कहना है, “भोपाल में हुए गैस हादसे को पूरी दुनिया जानती है और संयंत्र परिसर में जमा रासायनिक कचरे से पानी व मिट्टी प्रदूषित हो रही है, यह भी कई शोधों से जाहिर हो चुका है, लिहाजा पर्यावरणविदों की मौजूदगी में इस विषय पर चर्चा होती तो यह भोपालवासियों के लिए ज्यादा सार्थक होता।”

ज्ञात हो कि भोपाल के लिए दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। इस रात को यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) गैस ने हजारों परिवारों की खुशियां छीन ली थीं। इस हादसे के बाद से यह संयंत्र बंद पड़ा है और इसके परिसर में अनुमान के मुताबिक 18 हजार टन से ज्यादा रासायनिक कचरा जमा है।

यूनियन कार्बाइड से हुए हादसे के बाद से रासायनिक कचरे को जलाने की गैस पीड़ितों द्वारा लगातार आवाज उठाई जाती रही है, इसकी वजह पर्यावरण के प्रदूषित होने के साथ मिट्टी और भूजल के प्रदूषित होने का खुलासा कई शोधों के जरिए होता रहा है।

भोपाल में अमेरिका की यूनियन कार्बाइड ने 1969 में पदार्पण कर कीटनाशक कारखाना स्थापित किया था। इस कारखाने की शुरुआत के समय परिसर में घातक कचरे को डालने के लिए 21 गड्ढे बनाए गए थे। 1969 से 77 तक इन्हीं गड्ढों में घातक कचरा डाला गया।

कचरे की मात्रा में इजाफा होने पर 32 एकड़ क्षेत्र में एक सौर वाष्पीकरण तालाब (सोलर इवापरेशन पॉड) बनाया गया। इस तालाब में घातक रसायन जाता था, जिसका पानी तो उड़ जाता था मगर रसायन नीचे जमा हो जाता था। इसके बाद दो और सौर वाष्पीकरण तालाब बनाए गए।

हादसे के बाद सौर वाष्पीकरण के दो तालाबों का रासायनिक कचरा 1996 में तीसरे तालाब में डालकर उसे मिट्टी से ढक दिया गया। यह कचरा 18 हजार टन से कहीं ज्यादा है।

कई शोधों के जरिए यह बात भी सामने आ चुकी है कि संयंत्र के आसपास के लगभग तीन किलोमीटर परिधि के क्षेत्र में लगभग सौ फुट की गहराई तक जल प्रदूषित हो चुका है। इसकी वजह संयंत्र परिसर में जमा और तालाबों में दफन जहरीला कचरा है।

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