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“ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन” में देश भर के एनजीओ का लगा जमावड़ा-प्लास्टिक का भरपूर इस्तेमाल

November 22, 2015 9:45 am by: Category: पर्यावरण Comments Off on “ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन” में देश भर के एनजीओ का लगा जमावड़ा-प्लास्टिक का भरपूर इस्तेमाल A+ / A-

indiagov-logoभोपाल-भोपाल की विधानसभा परिसर में आयोजित पर्यावरण की चिंता का यह कार्यक्रम विभिन्न एनजीओ का एक एनजीओ के झंडे तले जमावड़ा बन कर रह गया है.इस कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता नर्मदा-समग्र एवं जन अभियान परिषद् के प्रणेता राज्यसभा सांसद अनिल माधव द्वे हैं .गौर मतलब है की विश्व हिंदी सम्मलेन भी इनकी की अगुआई में हुआ था जिसमें जनता का खर्च हुआ धन और उससे क्या फायदा हिंदी को मिला यह सामने है.

स्वयं दवे ने जो अभी चल रहे कार्यक्रम की प्रेस-वार्ता ली उसमें हिंदी का कोई स्थान नहीं था.उनके पीछे लगे बैनर को अंग्रेजी में लिखा गया था.जब पत्रकारों ने इस दिशा की और ध्यान दिलाया तब दवे को होश आया और उन्होंने कह दिया की उन्हें ग्लोबल वार्मिंग शब्द का हिन्दीकरण बता दिया जाय.इसके परिणाम स्वरूप रातों-रात हिंदी के पर्चे भी कार्यक्रम के लिए छपवाए गए.जिसकी चर्चा जबानों पर थी पर थी.

पांच करोड़ का खर्च एप्को करेगा 

इस कार्यक्रम का खर्च एप्को वहां कर रहा है इसमें वह पांच करोड़   की राशि वह खर्च करेगा लेकिन हासिल क्या हो रहा है सिर्फ कुछ व्यक्तिओं की ब्रांडिंग.इस कार्यक्रम में विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में अधिकाँश का विषय से कोई सरोकार नहीं है और उन्हें उस पर बोलने की जिम्मेदारी दे दी गयी.सूत्रों ने बताया की कई वाचक रातभर सम्बंधित विषय के जानकार से नोट्स बनवाते रहे ताकि सुबह बोल सकें.

आमंत्रितों में अधिक संख्या नर्मदासमग्र एवं जन-अभियान परिषद् के सदस्यों की है.

इस कार्यक्रम में 500 अतिथि आमंत्रित हैं जिनमें से 60 सदस्य नर्मदा-समग्र एवं 110 सदस्य जनअभियान परिषद् से हैं.इनका नाश्ता-भोजन भी पैकटों में बांध कर उनके रुकने के स्थान तक भेजा जा रहा है. सिंहस्थ और पर्यावरण को आवरण बना कर शासन के धन का दुरुपयोग सामने दिख रहा है.

प्लास्टिक के होर्डिंग एवं बर्तनों का खुल कर इस्तेमाल 

परिसर में लगे होर्डिंग प्लास्टिक के बने हुए हैं इनमें एक भी ऐसा अवयव नहीं है जो पुनर्स्थापित किया जा सके.चाय और भोजन परोसने के बर्तन भी ऐसे ही पदार्थों के बने हुए है जीके नष्ट करने से प्रचुर हाइड्रो-कार्बन उत्सर्जित होता है.एक प्लास्टिक या थर्माकोल के गिलास को जलाने में आधा -किलो कोयला व्यय होता है एवं इसमें उत्सर्जित हाइड्रो-कार्बन की कोई तुलना ही नहीं लेकिन इतना धन खर्च करने के बाद भी कोई सबक आयोजकों ने नहीं लिया है.

जिस तरह विश्व हिंदी सम्मलेन आयोजन का परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है और जिसकी संभावना भी कम है उसी तरह इस खर्च का हश्र निश्चित प्रतीत हो रहा है.भाषणों के अलावा पर्यावरण की चिंता करना और कहिन दृष्टिगोचर नहीं प्रतीत हो रहा है.[/box]
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