नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। नंदन सक्सेना और कविता बहल की फिल्म ‘आई कैन नॉट गिव यू माई फॉरेस्ट’ नियामगिरि में आदिवासियों के अस्तित्व के लिए संघर्ष की कहानी है। इस फिल्म की मुख्य विषय-वस्तु ओडिशा राज्य में नियामगिरि के जंगलों में मूलवासियों (आदिवासी) कोंध के जीवन से संबंधित है।
कविता ने बताया, “सरल शब्दों में कहा जाए तो यह फिल्म उन लोगों के बारे में है जिनका जंगल के साथ संबंध है।” यह फिल्म पर्यावरण मुद्दों को रेखांकित करती है और रोजमर्रा के जीवन में आदिवासियों के संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करती है।
इस फिल्म को इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण फिल्म के वर्ग में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
बंगाल के फिल्मकार बरुण चंदा ने अपनी फिल्म ‘सोहरा ब्रिज’ के बारे में जानकारी दी। यह एक बेटी की कहानी है, जो अपने पिता की तलाश में उत्तर पूर्व भारत के सुदूर क्षेत्रों की यात्रा करती है। वह खुद को काल्पनिक याद की जटिल भूल-भलैया की तरह खींचा हुआ पाती है।
बरुण चंदा ने कहा कि स्थानीय लोग ‘चेरापूंजी’ को ‘सोहरा’ के रूप में जानते हैं। इसलिए यह शीर्षक उन्हीं से प्रेरित है।
‘पकरम’ के निर्देशक शंकर देबनाथ ने अपनी कृति के बारे में जानकारी देते हुए कहा, “मैंने हमेशा अपने काम के जरिए खुद की तलाश की है।” यह बांग्ला फिल्म एक 10 वर्षीय बच्चे टप्पू के ईद-गिर्द घूमती है। वह वहां हमेशा ही ख्वाबों और फंतासियों की दुनिया में घूमता रहता है और खुद को तथा अपनी भावनाओं को अपनी चित्रकारी के जरिए अभिव्यक्त करता है।
शंकर देबनाथ ने कहा, “मैंने पकरम की कहानी अपने बचपन की यादों, ख्वाबों और कल्पनाओं तथा उन प्राकृतिक परिवेशों की आश्चर्यजनक दुनिया, जिनमें मैं बड़ा हुआ, की एक स्तुति के रूप में लिखी है।”