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 पं. सूर्यनारायण व्यास : एक चलता फिरता सूर्य (स्मृति दिवस : 22 जून) | dharmpath.com

Saturday , 3 May 2025

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पं. सूर्यनारायण व्यास : एक चलता फिरता सूर्य (स्मृति दिवस : 22 जून)

महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, कवि, साहित्यकार, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता के साथ मूर्धन्य ज्योतिषी और देशभक्त पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपना घर आंदोलनकारियों के लिए जनधर्मशाला बना दिया था।

महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, कवि, साहित्यकार, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता के साथ मूर्धन्य ज्योतिषी और देशभक्त पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपना घर आंदोलनकारियों के लिए जनधर्मशाला बना दिया था।

उनका साथ चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, गणेश शंकर विद्यार्थी, मनमोहन गुप्त, मन्मथ नाथ गुप्त, कैप्टन लक्ष्मी, यशपाल, भगवानदास माहौर, शिव वर्मा और जयप्रकाश नारायण जैसे कितने क्रांतिकारियों से रहा। एक महान युगद्रष्टा, मालवी भाषा के उन्नायक, संस्कृत, मराठी, हिंदी, बांग्ला भाषाओं पर भी जबरदस्त अधिकार रखने वाले पंडित सूर्य को महामानव कहा गया है।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में 2 मार्च, 1902 को जन्मे पं. व्यास ने विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। पं. व्यास के बारे में कई किवदंतियां, कथाएं एवं ऐतिहासिक तथ्य प्रचलित हैं। वे एक समय में दोनों हाथों से लिख सकते थे। उनमें एक हाथ से व्याकरण तो दूसरे से ज्योतिष के बारे में लिखने की विलक्षण क्षमता थी।

वे ‘विक्रम’ पत्र के संपादक भी रहे। वे विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर, कालिदास परिषद के संस्थापक और अखिल भारतीय कालिदास समारोह के जनक भी थे। ज्योतिष और खगोल के आप अपने जमाने के सर्वोच्च विद्वान थे, यही कारण था कि उस समय लगभग सभी शीर्षस्थ राजनेता आपको सम्मान देते थे।

अपने युग के बहुत बड़े विद्वान, जिन्हें संस्कृत, साहित्य, ज्योतिष व्याकरण के महानतम ज्ञाता और उनके शिष्य सर ओरेले स्टिन से लेकर पं. मदनमोहन मालवीय महाराज तक उन्हें सम्मान देते थे। पं. व्यास के 7 हजार विद्यार्थी रहे हैं और अनंत शिष्य। आश्रम में बिना किसी सरकारी मदद के बतौर कुलपति संस्कृत, ज्योतिष का अध्यापन करते। भारत का सबसे पुराना पंचाग ‘नारायण विजन पंचांग’ उन्हीं की देन है।

इनके पुत्र और आकाशवाणी-दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक पं. राजशेखर व्यास इसके प्रमाण आज भी संभालकर और संजोकर रखे हुए हैं। ये प्रमाण राष्ट्रीय धरोहर है।

पं. व्यास स्वतंत्रता के साथ-साथ पत्रकारिता में भी रमे थे। शचिंद्रनाथ सान्याल, भूदेव विद्यालंकार जैसे लोग इनके निरंतर संपर्क में रहे हैं, जो आर्थिक मदद खुद बढ़कर पहुंचाते थे, ताकि उनकी साहित्य और लेखन यात्रा सुचारु रूप से चलती रही। वे कानपुर से प्रकाशित ‘प्रताप’ से भी जुड़े थे।

पं. व्यास सामाजिक समरसता के पक्षधर भी रहे। उन्होंने 1916 में महाकाल मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को लेकर पहली गिरफ्तारी दी। इससे पहले वहां हरजिनों का प्रवेश वर्जित था। इतना ही नहीं, पंडितजी ने क्षिप्रा तट पर हरिजनों के साथ स्नान भी किया, तब उनकी दूसरी गिरफ्तारी 1927 में हुई। इस संबंध में सारे प्रमाण और कतरनें उनके पुत्र राजशेखर व्यास ने हैदराबाद के ‘हिंदी समाचार पत्र संग्रहालय’ से खोज निकाली हैं।

उज्जैन में बैठकर जो शख्स 42 मीटर गुप्त बैंड पर क्रांतिकारियों के लिए रेडियो स्टेशन चलाने के साथ-साथ दूसरे काम भी कर रहे थे। इस दौरान वे एक किताब ‘सागर प्रवास’ को भी संचालित कर रहे थे। राष्ट्रयज्ञ कलेंडर का प्रकाशन होना भी खुद बड़ी घटना थी।

सन् 1947 में जब यह तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ने को तैयार हैं, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सबसे पहले पं.सूर्यनारायण व्यास को उज्जैन से विशेष आग्रह कर दिल्ली बुलवाया।

आपने पंचांग देखकर भारत की कुंडली बनाई और बताया कि आजादी के लिए मात्र दो दिन ही शुभ हैं, 14 और 15 अगस्त। स्वतंत्रता के लिए मध्यरात्रि 12 बजे।

उनका मानना था कि इससे लोकतंत्र स्थिर रहेगा। इतना ही नहीं, पं. व्यास के कहने पर ही स्वतंत्रता की घोषणा के तत्काल बाद देर रात ही संसद को धोया गया, बाद में बताए मुहूर्त के अनुसार गोस्वामी गिरधारीलाल ने संसद की शुद्धि भी करवाई।

उसी समय आपने ये संकेत दे दिए थे कि 1990 के बाद ही देश की प्रगति होगी और 2020 तक भारत विश्व का सिरमौर बन जाएगा। यह सब सच होता दिख भी रहा है। यकीनन भारतीय दर्शन, काल एवं खगोल गणना ने दुनियाभर में अपना परचम लहराया है।

2 जून, 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पं. व्यास पर डाक टिकट जारी करते हुए एक तरह ऋण चुकाने की कोशिश की और कहा कि ‘जहां तक व्यासजी का प्रश्न है, ज्ञान और कर्म दोनों का अपूर्व समन्वय था। पं. सूर्यनारायण व्यास ने इस विद्या के माध्यम से दुनियाभर में भारत की एक अलग और प्रभावी छवि बनाई है।’

उम्र के चौथेपन में रोगों ने उन्हें मुक्त नहीं किया और 22 जून, 1976 को पं. व्यास का निधन हो गया। काश! मध्यप्रदेश सरकार भी अपने इस सपूत की स्मृति संजोए रखने के लिए कुछ करती।

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