नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अल्ट्रसाउंड तकनीक के जरिये जन्म से पहले बच्चे का लिंग पता करने पर पाबंदी लगाने के लिए बने पीसीपीएनडीटी एक्ट के कारगर न होने पर चिंता प्रकट करते हुए केंद्र सरकार से इस अधिनियम में बदलाव लाने की मांग की है।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. ए. मरतड पिल्लई और ऑनरेरी जनरल सेक्रेटरी व हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि इस कानून से लिंग-अनुपात में सुधार नहीं देखा गया है, इसलिए इस मसले को प्रभावशाली ढंग से हल करने के लिए सामाजिक की बजाय मेडिकल दखलअंदाजी की ज्यादा जरूरत है।
उन्होंेने कहा कि यह कानून फार्म भरने में हुई मामूली गल्तियों की वजह से डॉक्टरों को सजा दिलाने में प्रयोग हो रहा है, जिससे न सिर्फ मशीने जब्त कर ली जाती हैं, बल्कि डॉक्टरों पर मामले भी चलाए जाते हैं। इसलिए आईएमए ने इस कानून में सुधार के लिए कुछ सुझाव एकत्र किए हैं, जो इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
पिल्लई और अग्रवाल ने कहा कि पीएनडीटी एक्ट देश में लिंग अनुपात में सुधार के लिए बनाया गया था। फिर इसमें प्रयोग होने वाली तकनीक को नियंत्रित करने के लिए सुधार करके इसे पीसीपीएनडीटी एक्ट बनाया गया, जिसके जरिए जन्म से पहले बच्चे का लिंग पता करने पर पाबंदी लगाई गई। इसका मकसद अल्ट्रसाउंड तकनीक पर नियंत्रण कर बच्चे के लिंग के चुनाव और कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लगाना था।
उन्होंने कहा कि डब्लयूएचओ के हालिया प्रकाशन में यह बात स्पष्ट कही गई है कि इसका हल तकनीक पर पाबंदी लगाने से नहीं होगा, क्योंकि इससे जुड़ी और कई समस्याएं है जिनका हल होना बाकी है।
20 साल से कानून होने के बावजूद देश में लिंग-अनुपात में कोई बदलाव नहीं हुआ है, बल्कि इससे दो प्रमुख नकारात्मक परिणाम निकले हैं- अपने मौजूदा स्वरूप में यह कानून लोगों को अल्ट्रासोनोग्राफी के जीवन रक्षक फायदों से वंचित करता है, जबकि यह तकनीक अब पूरी दुनिया में चिकित्सा क्षेत्र का अहम हिस्सा बन चुकी है क्योंकि यह बिना किसी नुकसान के किफायती और उचित जांच प्रणाली है।
इस कानून की वजह से इस तकनीक से लैस क्लिनिकों के लिए काम करना बेहद मुश्किल हो गया है। नियमित और जरूरी जांच के लिए भी डॉक्टरों और उनके स्टाफ को कई मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। इस वजह से कई कुशल डॉक्टर भी यह स्कैन करने ये गुरेज करने लगे हैं, जिससे अल्ट्रासोनोग्राफी के माहिरों की कमी पैदा होने लगी है।