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 पेट्रोल-डीजल के दामों पर नियंत्रण की चुनौती | dharmpath.com

Wednesday , 14 May 2025

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पेट्रोल-डीजल के दामों पर नियंत्रण की चुनौती

पेट्रोल डीजल की कीमतें नई ऊंचाई पर और डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर होने से आर्थिक स्तर पर आम भारतीयों का दमखम सांसें भरने लगा है। लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। भले ही हम जितनी भी ऊंची डींगें मारते फिरें कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो रहा है, लेकिन यकीन कौन करेगा? जो लोग भुगत रहे हैं, वे ऐसे बयानों पर हंसें या रोएं?

पेट्रोल डीजल की कीमतें नई ऊंचाई पर और डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर होने से आर्थिक स्तर पर आम भारतीयों का दमखम सांसें भरने लगा है। लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। भले ही हम जितनी भी ऊंची डींगें मारते फिरें कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो रहा है, लेकिन यकीन कौन करेगा? जो लोग भुगत रहे हैं, वे ऐसे बयानों पर हंसें या रोएं?

8.2 फीसदी की जीडीपी के बीच आम लोगों से जुड़ी अर्थव्यवस्था की ये स्थितियां सरकार के सामने चुनौती पेश कर रही हैं, लेकिन पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग सरकार की नीति व नीयत पर सवाल खड़े कर रही है।

सही है कि रुपये के मूल्य में गिरावट और मजबूती का सीधा असर हमारी जिंदगी पर पड़ता है। कमजोर रुपया आमतौर पर पेट्रोल-डीजल की महंगाई के अलावा कई अन्य मदों में हमारी जेब पर बुरा असर डालता है। हालांकि, कुछ लोगों को इसका फायदा भी मिलता है। हाल के दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमत साल 2014 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर आम आदमी की थाली पर पड़ता है। गरीबों के साथ यह क्रूर मजाक है।

महंगाई बढ़ने का कारण बनता है पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी होना। इससे मध्यम एवं निम्न वर्ग के लोगों की हालत तबाही जैसी हो जाती है, वे अपनी परेशानी का दुखड़ा किसके सामने रोएं? बार-बार पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाना सरकार की नीयत में खोट को ही दर्शाता है। इस तरह की नीति बिल्कुल गलत है, शुद्ध बेईमानी है। इस तरह की नीतियों से जनता का भरोसा टूटता है और यह भरोसा टूटना सरकार की विफलता को जाहिर करता है।

जिसके पास सब कुछ है, वह स्वयंभू नेता और जिसके पास कुछ नहीं वह निरीह जनता। इसी परिभाषा ने नेताओं के चरित्र को धुंधला दिया है। तेल की कीमत बढ़ाने का फैसला सरकार भले अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों के कारण ले रही हो या सरकार का यह दावा कि इससे मिलने वाले राजस्व का उपयोग गरीबों के लिए आवासए शौचालय बनाने और बिजली पहुंचाने पर खर्च किया जाता है। इस तरह के तर्क लोगों के गले नहीं उतरते, क्योंकि पहले ही सरकार ने अलग-अलग मदों में कई तरह के उपकर लगा रखे हैं।

नोटबंदी व जीएसटी के घाव अभी भरे ही नहीं कि ऊपर से इस तरह पेट्रोल-डीजल की बेलगाम होती दरें सरकार की तानाशाही को दर्शाती है। देश में ऐसे कितने लोग हैं जो कारों एवं मोटरसाइकिलों पर चलते हैं? क्या पेट्रोल-डीजल का उपयोग गरीब लोग नहीं करते? क्या गरीबों के नाम पर गरीबी का मजाक नहीं उड़ाया जा रहा है? क्या इसका असर किसानों, मजदूरों, गरीबों और मेहनतकशों पर नहीं पड़ेगा?

आम जनता पर जबरन लादा जा रहा है इस तरह का भार। अतार्किक ढंग से गलत निर्णयों एवं नीतियों को जायज ठहराने की कोशिशों से सरकार की छवि खराब ही होती है। आखिर दाम बढ़ाने एवं करों के निर्धारण में कोई व्यावहारिक तर्क तो होना चाहिए, क्योंकि जहां तक रुपये की गिरती कीमत को थामे रखने का सवाल है तो यह मोदी सरकार के लिए कोई असंभव कार्य नहीं है। इन विकराल होती स्थितियों में सरकार को ही कोई कठोर कदम उठाने होंगे। ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे पेट्रोल-डीजल सस्ता हो सके।

इस मामले में कुछ दक्षिण एशियाई देशों का उदाहरण हमारे सामने हैं। जहां पेट्रोल-डीजल के दाम एक सुनिश्चित दायरे में रहते हैं, भले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसके भाव ऊपर-नीचे होते रहें एवं मुद्रा विनिमय की स्थितियों में भी उतार-चढ़ाव चलता रहे। वहां की सरकारें पेट्रोल-डीजल के दामों को बांधे रखती हैं।

इस प्रक्रिया से भले ही सरकार की राजस्व धनराशि घटती-बढ़ती रहे, लेकिन आम जनजीवन इनसे अप्रभावित रहता है। भारत में भी ऐसी ही स्थितियों को लागू करने की जरूरत है, ताकि आमजन एवं उपभोक्ताओं को मुसीबत के कहर से बचाया जा सके। महंगाई की मार से बचाने का उपाय सरकार को ही करना होगा और वही सरकार सफल है जो इन आपाद स्थितियों से जनजीवन को प्रभावित नहीं होने देती। (आईपीएन/आईएएनएस)(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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