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 फेड दर बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ी | dharmpath.com

Wednesday , 7 May 2025

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फेड दर बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ी

यह अलग बात है कि यह फैसला 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती आने के बाद लिया गया है, लेकिन समग्र तौर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और सुस्ती बनी हुई है। फेड के फैसले से निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था और खास तौर से उभरती अर्थव्यवस्था में यह अनिश्चितता और बढ़ेगी।

कई देशों को यह चिंता हो रही है कि विकसित देशों की मौद्रिक नीति में आ रहे बदलाव से बड़े पैमाने पर पूंजी उनकी अर्थव्यवस्था से बाहर निकलेगी, वैश्विक कर्ज का स्तर बढ़ेगा, बाजार का विश्वास डगमगाएगा और वित्तीय तथा कमोडिटी बाजार में उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा, जिसका उभरती अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर होगा।

साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर उम्मीद से कम है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा निवेश की स्थिति बहुत उत्साहवर्धक नहीं है। इसलिए कमजोर अर्थव्यवस्था में तेजी आने में लंबा वक्त लग सकता है।

ऐसी स्थिति में फेड द्वारा दर बढ़ाया जाना जोखिम से भरा हुआ है।

फेड ने यह भले ही कहा है कि वह धीमे-धीमे दर बढ़ाएगा, लेकिन इसका नकारात्मक असर उभरती अर्थव्यवस्था को झेलना होगा, जिनके वित्तीय बाजार का प्रदर्शन खराब है और आर्थिक परिदृश्य कमजोर है।

ब्याज दर में तेजी से वृद्धि करने से उभरते बाजार से पूंजी का प्रवाह अमेरिका की तरफ बढ़ेगा, जिनकी घटते विदेशी निवेश से हालत खराब है। इसका वैश्विक मुद्रा बाजारों, शेयर बाजारों, बांड और कमोडिटी बाजारों पर भी व्यापक असर होगा।

फेड द्वारा इससे पहले दो बार 1994 और 2004 में ब्याज दर बढ़ाए जाने से संबंधित आंकड़ों से पता चलता है कि दर बढ़ाए जाने के अगले साल अमेरिका की ओर पूंजी का प्रवाह 60-80 फीसदी बढ़ा।

वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फायनेंस ने अक्टूबर की रिपोर्ट में कहा था कि 1988 के बाद पहली बार 2015 में उभरते बाजारों में शुद्ध पुंजी प्रवाह नकारात्मक रहेगा।

संस्थान द्वारा 30 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक इस साल पूंजी का इन देशों से बहिर्प्रवाह 540 अरब डॉलर रहेगा, जो 2014 में 32 अरब डॉलर था। 2016 में यह प्रवाह 306 अरब डॉलर रहेगा।

साथ ही आज जब विभिन्न देश एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, ऐसे में उभरती अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से विकसित अर्थव्यवसथा में आने वाली तेजी भी प्रभावित होगी, जिससे आर्थिक गिरावट का चक्र चलता रहेगा।

इससे लिए अमेरिका के लिए बेहतर यही है कि वह ऐसी नीति पर नहीं चले, जिससे उसका तो भला हो, लेकिन दूसरे का बुरा हो।

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