कोच्चि, 18 दिसम्बर (आईएएनएस)। कहते हैं समय से पहले और किस्मत से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता। यह कहावत केरला ब्लास्टर्स के प्रशंसकों पर फिट बैठती है।
2014 में इन्हें किस्मत ने दगा दिया था और अब अपने ही घर में एक बार फिर इनकी किस्मत दगा दे गई।
केरल के 60 हजार स्थानीय प्रशंसक इसी उम्मीद के साथ फुटबाल के अपने घर जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम पहुंचे थे कि उनकी टीम एटलेटिको दे कोलकाता को हराकर पहली बार हीरो इंडियन सुपर लीग का खिताब जीतेगी और वे खुशियां मनाते घर लौटेंगे लेकिन हुआ इसके उलट।
सौरव गांगुली के मालिकाना हक वाली कोलकाता टीम ने रोमांचक खिताबी मुकाबले में केरल को पेनाल्टी शूटआउट के आधार पर 4-3 से हराते हुए आईएसएल के तीसरे सीजन का खिताब जीत लिया। कोलकाता की टीम दूसरी बार चैम्पियन बनी।
कोलकाता ने 2014 में केरल को ही मुम्बई में 1-0 से हराते हुए खिताब अपने नाम किया था। कोलकाता इस लीग का खिताब दो बार जीतने वाली पहली टीम बन गई है। दूसरी ओर, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के मालिकना हक वाली केरल की टीम दो फाइनल खेलने के बाद भी खिताब से महरूम रह गई।
कोलकाता के मिडफील्डर ज्वेल राजा शेख द्वारा पेनाल्टी शूटआउट का आखिरी गोल करने के साथ ही कोलकाता की टीम जश्न में डूब गई और साथ ही जश्न में डूब गए कोलकाता के गिने-चुने समर्थक, जो केरल के समर्थकों से इस कदर घिरे थे कि कई मौकों पर चाह कर भी खुलकर जश्न नहीं मना पा रहे थे।
दूसरी ओर, केरल के 60 हजार के करीब जुनूनी समर्थकों का हाल बुरा था। मैच समाप्त होने के बाद पूरे स्टेडियम में सन्नाटा पसर चुका था। अधिकतर दर्शक परिणाम आते ही स्टेडियम से चले गए और पुरस्कार वितरण समारोह के लिए गिने-चुने केरल समर्थक ही रुके रहे।
चुपचाप बैठे ये प्रशंसक अपनी किस्मत को कोस रहे थे। अपनी टीम को वे कोस नहीं सकते थे क्योंकि टीम तो अच्छा खेलते हुए फाइनल तक पहुंची। यही टीम 2015 में सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच सकी थी। उलटे घर में उसे कई हार मिलीं लेकिन समर्थकों ने उसका साथ नहीं छोड़ा।
शाम के चार बजे नजारा यह था कि केरल की आर्थिक राजधानी के मध्य में स्थित जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम पीले समंदर में तब्दील हो चुका था। वह नजारा वाकई देखने लायक था।
60 हजार की क्षमता वाले इस स्टेडियम के अंदर साढ़े तीन बजे से प्रवेश की इजाजत थी और साढ़े चार बजे तक स्ट़ेडियम 80 फीसदी भर चुका था। मजेदार बात यह है कि जितने लोग स्टेडियम के अंदर थे, उतने या उससे थोड़े ही कम स्टेडियम के बाहर अपनी बारी के इंतजार में थे या फिर स्टेडियम के अंदर किसी तरह घुसने की जुगाड़ में थे।
स्टेडियम के अंदर के ²श्य का वर्णन शब्दों में करना मुश्किल था। अंदर हर कोई पीले टी-शर्ट में दिखाई दे रहा था। हर किसी के अंदर जबरदस्त उत्साह था। हर कोई स्टेडियम के अंदर के इस नजारे को सेल्फी के माध्यम से समेटना चाहता था।
इन दिनों केरल में क्रिसमस को लेकर जश्न का माहौल है और बड़ी संख्या में लोग पीली जर्सी के अलावा सेंटा कैप भी लगाए हुए पहुंचे थे। गालों पर पेंटिंग, सिर पर बैंड, पीला चश्मा, पीला साफा और न जाने क्या-क्या लगाए लोग अपनी टीम के लिए अपना प्यार परिलक्षित कर रहे थे।
कोच्चि में यह नजारा वैसे आम होता है। लोग लीग मैचों में भी 50 हजार के करीब की संख्या में यहां पहुंचते थे लेकिन फाइनल खास था। इस साल केरल के फुटबाल प्रेमियों को उम्मीद थी कि उनकी टीम न सिर्फ खिताब जीतेगी बल्कि 2014 के फाइनल की हार का हिसाब भी कोलकाता से चुकता करेगी।
लेकिन हुआ इसके उलट। दिल्ली के खिलाफ सेमीफाइनल के दूसरे चरण में पेनाल्टी शूटआउट में तीन गोल बचाने वाले केरल के गोलकीपर संदीप नंदी ने मैच से एक दिन पहले कहा था कि शूटआउट लाटरी की तरह होता है। किस्मत ने साथ दिया तो बल्ले-बल्ले और ना दिया अफसोस के सिवाय और कुछ हाथ नहीं लगता।
केरल के समर्थकों को दूसरी बार अफसोस हाथ लगा है। अपनी टीम को यहां तक पहुंचते देखना हालांकि उनके लिए सुखद अहसास है लेकिन खिताब तक नहीं पहुंच पाने का गम उन्हें कई दिनों तक सालेगा। हो सकता है कि क्रिसमस का जश्न उन्हें इस गम को भुलाने में मदद करे, लेकिन सच्चाई यह है कि वे खिताब के साथ क्रिसमस के जश्न में शामिल होना चाहते थे।