रूड़की, 19 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तराखंड जल विद्युत निगम एवं आईआईटी रूड़की के सहयोग से केन्द्रीय जल आयोग द्वारा यहां आयोजित तृतीय राष्ट्रीय बांध सुरक्षा सम्मेलन में रविवार को बांध सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया, जिनका सामना वर्तमान में जारी बांध सुरक्षा पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डीआरआईपी) के कार्यान्वयन में करना पड़ रहा है।
सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रीय एवं विदेशी विशेषज्ञों द्वारा ज्ञान, अनुभव, नवोन्मेष, नवीन प्रौद्योगिकी आदि पर विचार साझा किया।
सम्मेलन में 400 से अधिक शिष्टमंडलों ने भाग लिया तथा देश के भीतर और देश के बाहर के विशेषज्ञों के 70 से अधिक तकनीकी शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। लगभग 40 राष्ट्रीय एवं विदेशी संगठनों ने सम्मेलन स्थल पर आयोजित प्रदर्शनी के जरिए अपनी प्रौद्योगिकियों, उत्पादों एवं सेवाओं को प्रदर्शित किया।
इस सम्मेलन में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन, नीदरलैंड तथा जर्मनी के पेशेवरों ने हिस्सा लिया।
लगभग 283 अरब घन मीटर की कुल भंडारण क्षमता के साथ बड़े बांधों की संख्या के लिहाज से दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद भारत का तीसरा स्थान है। लगभग 80 प्रतिशत बड़े बांधों ने 25 वर्ष की उम्र पार कर ली है और उनमें से कई के सामने अब विलंबित रखरखाव की चुनौती खड़ी हो गई है। इनमें से कई बांध बेहद पुराने हैं (लगभग 170 बांधों की उम्र 100 वर्ष से अधिक है) और उनका निर्माण ऐसे समय में हुआ था, जिनके डिजाइन प्रचलन एवं सुरक्षा संबंधी विचार वर्तमान डिजाइन मानकों एवं मौजूदा सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं हैं।
इनमें से कई बांधों के सामने कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं और उनकी संरचनात्मक सुरक्षा तथा परिचालनगत कुशलता सुनिश्चित करने के लिए उन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। बड़े बांधों की विफलता बांधों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं को बाधित करने के अलावा गंभीर रूप से जान, माल एवं पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है।
इसके महत्व को महसूस करते हुए जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 2012 में विश्व बैंक की सहायता से छह वर्षीय बांध सुरक्षा पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डीआरआईपी) की शुरुआत की। इसमें संस्थागत सुधारों एवं सुरक्षित तथा वित्तीय रूप से टिकाऊ बांध परिचालनों से संबंधित नियामक उपायों को मजबूत बनाने के साथ भारत के सात राज्यों में 225 बड़ी बांध परियोजनाओं में व्यापक पुनर्वास एवं सुधार के प्रावधान हैं। इस परियोजना का कार्यान्वयन सात राज्यों (झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु एवं उत्तराखंड) में किया जा रहा है।