Monday , 6 May 2024

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बिहार चुनाव : कोसी में राजग की जीत आसान कर सकते हैं पप्पू यादव

सहरसा, 4 नवंबर (आईएएनएस)। ‘मैला आंचल’ जैसी कालजयी रचना का निर्माण करने वाले मशहूर साहित्यकार फनीश्वर नाथ रेणु ने सन् 1972 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्र में बाढ़, सूखा व प्रवास के मुद्दे को उठाया था, हालांकि इस चुनाव में उनकी हार हुई लेकिन उनके उठाए मुद्दे कमोबेश आज भी मौजूद हैं। बाद में मुद्दों को उन्होंने अपने दूसरे उपन्यास ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ में भी उठाया।

सहरसा, 4 नवंबर (आईएएनएस)। ‘मैला आंचल’ जैसी कालजयी रचना का निर्माण करने वाले मशहूर साहित्यकार फनीश्वर नाथ रेणु ने सन् 1972 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्र में बाढ़, सूखा व प्रवास के मुद्दे को उठाया था, हालांकि इस चुनाव में उनकी हार हुई लेकिन उनके उठाए मुद्दे कमोबेश आज भी मौजूद हैं। बाद में मुद्दों को उन्होंने अपने दूसरे उपन्यास ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ में भी उठाया।

रेणु द्वारा उठाई गई समस्याओं पर बाद में बासु भट्टाचार्य ने एक फिल्म भी बनाई, लेकिन बिहार के कोसी क्षेत्र में समस्या जस की तस बनी हुई है। वर्तमान विधानसभा चुनाव में हालांकि ये मुद्दे गौण हैं।

क्षेत्र में सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिला सहित 13 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी के मार्फत जीत की नई इबारत लिखने को आशान्वित हैं।

कोसी क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पैठ कमजोर रही है। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद पार्टी यहां की तीन में से एक सीट पर भी जीत नहीं दर्ज कर पाई। साल 2010 विधानसभा चुनाव के दौरान, जनता दल (युनाइटेड) के साथ गठबंधन के बावजूद भाजपा मात्र एक विधानसभा सीट सहरसा जीतने में कामयाब हो पाई थी।

मुकाबले में पप्पू यादव की मौजूदगी से यादव वोटों में विभाजन को लेकर भाजपा क्षेत्र में कुछ बेहतर करने के प्रति आशान्वित दिख रही है। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जद (यू) नेता शरद यादव को पटखनी दी थी। पप्पू यादव को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक अदालत ने विधायक अजीत सरकार हत्याकांड में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में पटना उच्च न्यायालय ने सबूतों के अभाव में उन्हें मामले से बरी कर दिया।

पप्पू यादव कई पार्टियों का हिस्सा रहे हैं। अंतत: इस साल उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी का गठन किया।

मधेपुरा के एक निवासी अमरदीप यादव ने कहा, “क्षेत्र का समस्त सामाजिक समीकरण महागठबंधन के पक्ष में है, लेकिन पप्पू यादव फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भले ही वह एक भी सीट नहीं जीतें लेकिन महागठबंधन की जीत के मंसूबों पर पानी जरूर फेर सकते हैं।”

कई ऐसे लोग भी हैं, जिनका मानना है कि पप्पू यादव की मौजूदगी से चुनाव परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

के.वी.वीमेन्स कॉलेज के प्रोफेसर सुनील यादव ने कहा, “पप्पू यादव इस चुनाव में बेनकाब हो चुके हैं। हर व्यक्ति इस बात से अवगत है कि किसके पैसों पर वह हेलीकॉप्टर पर उड़ रहे हैं। यादव लोग बेवकूफ नहीं हैं।”

सुपौल में शिक्षक अजय कुमार के मुताबिक, यह कहना आसान नहीं है कि मतदाताओं का झुकाव किस ओर होगा।

उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में यादव विभाजित हैं। क्षेत्र में पप्पू यादव की गहरी पैठ है, जो मतदाताओं को प्रभावित करेगा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव व शरद यादव के अपने-अपने समर्थक हैं। कुल मिलाकर तस्वीर साफ नहीं है।”

क्षेत्र के मुरलीगंज के बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र में मुद्दा रोजगार है न कि जाति।

एक चाय दुकान पर सुधीर यादव ने कहा, “हम सब रोजगार की तलाश में हैं। प्रखंड स्तर पर आईटी ऑपरेटर के लिए हमने आवेदन दिया था। हम में से सभी का चयन हो गया, लेकिन एक साल होने को हैं, आज तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला।”

क्षेत्र में भाजपा सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है, बाकी चार सीटें घटक दल राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को, एक सीट उपेद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को तथा एक सीट पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को दी गई है।

महागठबंधन की बात करें, तो जद (यू) आठ सीटों पर जबकि राजद पांच सीटों पर ताल ठोक रही है।

पप्पू यादव की पार्टी सुपौल विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उनकी पत्नी रंजीता रंजन साल 2010 में विधानसभा चुनाव हार गई थीं, हालांकि साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने जीत दर्ज की।

कोसी क्षेत्र में पांच नवंबर को मतदान होंगे, जो बिहार विधानसभा चुनाव का पांचवां व अंतिम चरण है।

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