नई दिल्ली, 5 अक्टूबर – केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार देश को एक नहीं बल्कि कई तरीकों से साफ करने के लिए संकल्पबद्ध नजर आ रही है। अपने महात्वाकांक्षी कदम के तहत इसने 287 बेकार कानूनों और हजारों पुराने अनुचित विधेयकों को विधि पुस्तिका से हटाने की मंशा जाहिर की है।
भारत के पास विश्व का न सिर्फ सबसे बड़ा संविधान है, बल्कि इसकी विध पुस्तिका भी काफी भारी है जिसमें 1,086 केंद्रीय और 5,000 राज्य से जुड़े कानून मौजूद हैं।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि जिस कदम का फैसला पिछले सप्ताह केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने किया है, वह प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन का ही हिस्सा है।
रोहतगी ने आईएएनएस से कहा, “यह पुराने कचड़ों को साफ करने और हटाने जैसा है। यह प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन का हिस्सा है। यह लंबे समय से लंबित है। 1860 के कानून मौजूद हैं, जबकि ब्रिटिश चले गए और अब इसकी जरूरत नहीं है। इसका कोई मतलब नहीं है, इसका यहां कोई स्थान नहीं है और जिस तरह बेकार व्यवस्था को बदला जाता है, वैसे इसे फेंक दिए जाने की जरूरत है।”
प्रसाद ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान 29 सितंबर को कहा था कि ब्रिटेन की तरह जहां कुछ सालों बाद अनुचित विधेयकों को हटा दिया गया, भारत भी उन्हीं विधेयकों को रखेगा जो सरकार के बजट को 10 या आगे के सालों के लिए पैसा आवंटित करता है।
इसके अतिरिक्त पुरानी चीजों को हटा दिया जाएगा। इनकी संख्या सैंकड़ों में होगी।
अगर सरकार इस काम में सफल होती है, तो यह 30 साल पहले 1984 में शुरू हुए काम की पराकाष्ठा होगी, जब विधि आयोग ने इन कानूनों को हटाने की सिफारिश की थी।
मौजूदा सरकार ने 31 अगस्त को मौजूद समय के हिसाब अप्रासंगिक और बेकार कानूनों को हटाने से संबंधित विधेयक पेश किया था। अब इस पर नया विधेयक संभवत: नवंबर-दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
सरकार के कदम के तहत विधि पुस्तिका से 178 वर्ष पुराना बंगाल जिला अधिनियम, 1836, यंग पर्सन्स अधिनियम, 1956, समाचार पत्र (मूल्य व पृष्ठ) अधिनियम, 1956, दिल्ली होटल अधिनियम, 1949 को हटा दिया जाएगा।
इधर, कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ कानून इसकी प्रासंगिकता की शर्त पर बनाए जाने चाहिए थे।
बैंगलोर मैरेज वैलिडेटिंग एक्ट 1936, चाइल्ड : चिल्ड्रेन (प्लेजिंग आफ लेबर) एक्ट, 1933 जैसे कानून अमान्य कर दिए जाएंगे।
प्रख्यात वकील कामिनी जायसवाल ने कहा कि ऐसे कानूनों को हटा देना चाहिए।
उन्होंने कहा, “वे सिर्फ विधि पुस्तिका को भर रहे हैं, उनका कोई इस्तेमाल नहीं होता।”
वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमरेंद्र शरण ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रक्रिया यहां समाप्त नहीं होनी चाहिए।