कोलकाता, 7 नवंबर –भारत में पाई जाने वाली विविध वनस्पतियों के लंदन स्थित संग्रहालयों में मौजूद अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर उन्हें भारत लाया जाएगा। इसके अलावा भारतीय संग्रहालयों में संग्रहीत अभिलेखों का भी डिजिटलीकरण कर सभी दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से एक जगह उपलब्ध कराया जाएगा।
भारतीय संग्रहालय, भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण (बीएसआई)और इंग्लैंड के ससेक्स विश्वविद्यालय के अधिकारी आपसी साझेदारी के तहत भारतीय वनस्पतियों की प्रतिकृतियों को डिजिटल रूप में भारत लाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
डिजिटल प्रत्यावर्तन का आशय सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण किसी अभिलेख को उसके मूल स्थान पर डिजिटल स्वरूप में स्थानांतरित करना है और यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान में काफी प्रचलित हो चुका है।
ससेक्स विश्वविद्यालय में इतिहास (अंतर्राष्ट्रीय विकास) की वरिष्ठ प्राध्यापिका विनीता दामोदरन ने आइएएनएस को बताया, “मैं यहां के संग्रहालयों में संग्रहीत प्राकृतिक संग्रहों के संरक्षण के लिए भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण और भारतीय संग्रहालय को सहयोग देने और लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के संग्रहों का डिजिटलीकरण करने में मदद करने के लिए आया हूं कि ताकि हम भारत के लिए सांस्कृतिक तौर पर महत्वपूर्ण इन दस्तावेजों को डिजिटल स्वरूप में भारत ला सकें। इसके जरिए हम इन सब जगहों पर संग्रहीत अभिलेखों को एक जगह ला सकते हैं।”
जलवायु धरोहर और आधुनिक भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ दामोदरन यहां डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाली भारत की पहली महिला ई. के. जानकी पर व्याख्यान देने आई हैं। दामोदरन, जानकी की रिश्तेदार भी हैं।
इस परियोजना में भारतीय संग्रहालय, बीएसआई तथा लंदन के नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम (एनएचएम) में संरक्षित नमूनों को शामिल किया जाएगा।
एनएचएम प्राकृतिक इतिहास के नमूनों को संरक्षित करने वाला विश्व का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इसं संग्रहालय में प्राकृतिक इतिहास से जुड़े सात करोड़ नमूने संरक्षित हैं, जिसमें सूक्ष्मदर्शी से देखी जा सकने वाले नमूनों से लेकर कभी पृथ्वी पर पाए जाने वाले विशालकाय हाथियों (मैमथ) के कंकाल भी शामिल हैं।
एनएचएम में सन 1750 से लेकर बीसवीं सदी के बीच की महत्वपूर्ण कलाकृतियां संग्रहीत हैं, तथा संग्रहालय में संरक्षित भारतीय नमूनों का विशाल संग्रह दर्शाता है कि आखिर ब्रिटिशों के लिए भारत का इतना महत्व क्यों था।
बीएसआई के निदेशक परमजीत सिंह ने कहा कि यह परियोजना अगले 100 वर्षो तक वनस्पति विकास में सहायक होगी।