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 भारत को क्यों है 35 टैंकर खून की जरूरत | dharmpath.com

Thursday , 8 May 2025

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भारत को क्यों है 35 टैंकर खून की जरूरत

भारत में लोगों के इलाज के लिए खून की इतनी कमी है कि उसे पूरा करने के लिए 35 टैंकर खून की जरुरत है। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में खून बरबाद हो जाता है, क्योंकि वहां जरुरत से ज्यादा है।

भारत में लोगों के इलाज के लिए खून की इतनी कमी है कि उसे पूरा करने के लिए 35 टैंकर खून की जरुरत है। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में खून बरबाद हो जाता है, क्योंकि वहां जरुरत से ज्यादा है।

इंडिया स्पेंड ने सरकारी आंकड़ों का अध्ययन कर यह जानकारी दी है।

इसके मुताबिक अनुमानत: 11 लाख यूनिट खून की कमी है। एक यूनिट में या तो 350 मिली लीटर खून होता है या 450 मिलीलीटर। साल 2015-16 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे. पी. नड्डा ने लोकसभा में जुलाई 2016 में कहा कि अगर हम इन आंकड़ों को टैंकर में परिवर्तित करें तो एक स्टैंडर्ड टैंकर ट्रक की क्षमता 11,000 लीटर होती है। इस हिसाब से हमें 35 टैंकर खून की जरुरत है।

प्रतिशत के संदर्भ में भारत में कुल जरुरत का 9 फीसदी कम खून उपलब्ध है, जबकि साल 2013-14 में 17 फीसदी की कमी थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 84 फीसदी कम खून उपलब्ध है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में 66 फीसदी और अरुणाचल प्रदेश में 64 फीसदी कमी है। जबकि चंडीगढ़ में जरुरत से 9 गुणा ज्यादा खून उपलब्ध है। दिल्ली में तीन गुणा ज्यादा, दादर और नगर हवेली, मिजोरम और पांडिचेरी में जरूरत से दोगुना ज्यादा खून उपलब्ध है।

भारत में कुल 2,708 ब्लड बैंक हैं, लेकिन देश के 81 जिलों में एक भी ब्लड बैंक नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के 11 जिलों में ब्लड बैंक नहीं है। उसके बाद असम और अरुणाप्रदेश के दोनों के 9 जिलों में कोई ब्लड बैंक नहीं है।

फेडरेशन ऑफ बॉम्बे ब्लड बैंक के अध्यक्ष और पैथोलॉजिस्ट जरीन भरूचा का कहना है कि रक्त दान मोटे तौर से और एक ही समुदाय के लोग कर रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में खून की काफी नहीं है। भरूचा का कहना है, “भारत में बहुत बड़ी ग्रामीण आबादी है, करीब 70 फीसदी। इसलिए हमें सबसे सूदूर क्षेत्रों में भी खून मुहैया कराने की जरूरत है।”

खून की कमी का एक कारण यह भी है कि इसके लिए कोई केंद्रीकृत कलेक्सन एजेंसी नहीं है। यह मुख्य तौर से स्थानीय स्तर पर या फिर राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है। कुछ इलाकों में एक ही समय में ज्यादा खून इकट्ठा हो जाता है, जबकि उसे धीरे-धीरे इकट्ठा होना चाहिए।

भरूचा का कहना हैं, “इससे दो समस्याएं पैदा होती है। पहली उस क्षेत्र में भविष्य में खून की कमी हो सकती है। ऐसे देश में जहां रक्त दान करने की संस्कृति नहीं है, अगर हर कोई एक ही साथ रक्त दान करेगा तो आगे जरूरत के समय कोई आगे नहीं आएगा। दूसरा आपके पास बहुत सारा खून इकट्ठा हो जाएगा, जिसकी आपको जरूरत नहीं है। तो इसका एक हिस्सा बेकार हो जाएगा।”

एशियन एज की मई 2016 की रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी 2011 से दिसंबर 2015 के दौरान मुंबई के ब्लड बैंकों ने 1,30,000 लीटर खून बर्बाद किया। सूचना अधिकार कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने मुंबई डिस्ट्रिक एड्स कंट्रोल सोसाइटी से ये आंकड़े इकट्ठा किए थे, जिसमें बताया गया कि ये खून काफी दिन पुराने थे और बेकार थे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के मुताबिक रक्त दान केवल स्वैच्छिक दान के माध्यम से कम जोखिम वाली आबादी से ही होना चाहिए।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) जो कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का प्रभाग है और एचआईवी, एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चलाती है। इसकी रिपोर्ट में कहा कि स्वैच्छिक रक्त दान साल 2006 के 54 फीसदी से बढ़कर साल 2013-14 में 84 फीसदी हो गई है।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये गलत आकंड़े हैं। क्योंकि नाकों ने परिवार के अंदर किए गए रक्त दान के आंकड़ों को भी इसमें मिला दिया है, जो डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 1996 में पैसे लेकर किए जाने वाले रक्त दान पर रोक लगा दी है। लेकिन यह जारी है। अस्पताल अक्सर जरुरतमंद परिवार को ऐसे दानदाता के पास भेजते हैं जो पैसे लेकर यह काम करते हैं।

भरूचा का कहना है, “हर किसी को दानदाता नहीं मिलता। इसलिए उन्हें इसके पैसे भी चुकाने पड़ते हैं। पैसे लेकर खून देनेवाला परिवार का सदस्य बनकर अस्पताल आता है और उसे परिवार के बारे में जानकारी दे दी जाती है, ताकि पूछताछ में सवालों के जबाव दे सके।”

पैसे लेकर रक्त दान करनेवालों से खून लेना असुरक्षित हो सकता है। क्योंकि वे अपनी नकली मेडिकल हिस्ट्री बनवा सकते हैं। इसमें एचआईवी, हेपेटाइटिस ए और बी और मलेरिया जैसे रोगों के संचरन का खतरा है।

खून की कमी से इसके काले कारोबार को भी बढ़ावा मिला है। बीबीसी की जनवरी 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में 17 लोगों का अपहरण कर लिया गया और ढाई सालों तक जबरदस्ती उनका खून निकाल कर बेचा गया। उनका सप्ताह में तीन बार जबरदस्ती खून निकाला गया। रेड क्रास का कहना है कि 8-12 हफ्तों के बीच केवल एक बार ही रक्त दान करना चाहिए।

भरूचा ने बताया, “चूंकि खून की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, क्योंकि सर्जरी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है और मेडिकल पर्यटन भी बढ़ता जा रहा है। इसलिए हमें समुदायों में जागरुकता फैलाने की जरुरत है। हमें नियमित रूप से रक्तदान की संस्कृति को पैदा करने की जरूरत है। हर तीन महीने में रक्त दान करने से इसकी आपूर्ति भी बढ़ेगी और खून सुरक्षित भी रहेगा।”

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