हैदराबाद, 24 फरवरी (आईएएनएस)। भारत में निवेश को लेकर अमेरिका ने मंगलवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में नई स्फूर्ति और आत्मविश्वास तथा भारत और अमेरिका के बीच वाणिज्यिक सहयोग की अपार संभावनाएं होने के बावजूद भारत को अभी कारोबार करने की दृष्टि से कठिन देश माना जा रहा है।
इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस को संबोधित करते हुए अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने दोनों देशों पर ‘उच्चस्तरीय द्विपक्षीय निवेश संधि’ करने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व बैंक की रैंकिंग में 142वें क्रम पर है और कारोबार करने की सहूलियत की बात की जाए तो ‘निवेशक भावना अभी भी कमजोर है।’
वर्मा ने कहा, “भारत में बौद्धिक संपदा कानून का पालन अभी भी कमजोर माना जा रहा है, और व्यापार के कई क्षेत्र अभी भी विदेशी निवेशकों और कारोबारियों के लिए बंद हैं।”
उन्होंने कहा, “हमें पता है कि प्रधानमंत्री ने नौकरशाही प्रक्रिया में सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, और हम बेहद बेचैनी से इस दिशा में वास्तविक सुधार होता देखना चाह रहे हैं।”
भारत में कारोबार करने में आने वाली मुश्किलों पर उन्होंने कहा कि होटलों की श्रृंखला चलाने वाली एक कंपनी के मुख्य कार्यकारी ने हाल ही में जिक्र किया कि भारत में होटल बनाने के लिए लगभग 80 मंजूरियां लेनी पड़ती हैं, जबकि सिंगापुर में सिर्फ छह मंजूरियां हासिल करनी पड़ती हैं।
भारत में धीमी न्याय व्यवस्था को निवेश की दिशा में बड़ी अड़चन बताते हुए वर्मा ने कहा, “भारतीय अदालतों में तीन से चार करोड़ मामले लंबित पड़े हुए हैं। कंपनियां ऐसी अर्थव्यवस्था में निवेश या बीमा नहीं करना चाहेंगी जहां कानूनन न्याय मिलने में देर लगती हो।”
वर्मा ने कहा कि इस तरह की चुनौतियों से उच्चस्तरीय द्विपक्षीय निवेश संधि के जरिए निपटा जा सकता है और इसीलिए “अमेरिका, भारत के साथ इस तरह की संधि पर बातचीत करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पर वर्मा ने कहा, “अगर भारत सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी, नवीनतम उत्पादों और नवाचार चाहता है तो उसे बौद्धिक संपदा की रक्षा करने वाले सर्वोत्तम कानून वाले देश की पहचान बनानी होगी।”
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच पिछले 12 वर्षो में कारोबार पांच गुना बढ़कर 1.9 करोड़ डॉलर से 100 अरब डॉलर हो चुका है। मात्र एक दशक में अमेरिका द्वारा भारत को होने वाली रक्षा बिक्री शून्य से 10 अरब डॉलर हो चुकी है।