भोपाल, 2 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में बीते चार वर्षो में जैविक खेती का रकबा बढ़कर लगभग छह गुना हो गया है, मगर किसानों को राज्य सरकार की त्रुटिपूर्ण प्रमाणीकरण नीति के कारण इसका लाभ नहीं मिल पाया है। यह बात एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) की एक अध्ययन रिपोर्ट में कही गई।
एसोचैम महासचिव डी एस रावत और वरिष्ठ निदेशक (कृषि) ओ एस त्यागी ने गुरुवार को अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि राज्य में 2009-10 में जैविक खेती का रकबा 4.32 लाख हेक्टयर था, जो 2014 में बढ़कर 26 लाख हेक्टेयर हो गया। राज्य में प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र हालांकि मात्र 1.48 लाख हेक्टेयर ही है। इसके चलते किसानों को रकबा बढ़ने का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
रावत ने बताया कि राज्य सरकार ने वर्ष 2010 में जैविक खेती को प्रमाणित करने की नीति बनाई, मगर वह इसे लागू करने में नाकाम रही। इसके चलते किसान जैविक खेती तो करता है, मगर प्रमाणीकरण के अभाव में वह उसे बड़े बाजार में नहीं बेच पाता। प्रमाणीकरण के अभाव में किसान को उत्पाद का दाम नहीं मिल पाता है।
अध्ययन रिपोर्ट ‘मध्य प्रदेश में जैविक खेती : भारतीय कृषि के लिए उभरता अवसर’ के मुताबिक राज्य में किसान सोयाबीन, गेहूं, कपास, मसूर, सफेद मूसली, मक्का, अरहर, सब्जियां तथा गन्ना जैसी जैविक फसलें उगाते हैं।
रावत ने बताया कि अन्य राज्यों में किसानों की आमदनी में जैविक खेती के चलते दस गुना तक का इजाफा हुआ है, मगर मध्य प्रदेश में 1.7 लाख किसानों की ही रोजी रोटी जैविक खेती से चल रही है।
एसोचैम ने सरकार को सुझाव दिया है कि प्रमाणित जैविक खेती क्षेत्र को बढ़ाने के लिए तैयार की गई नीति को तत्काल लागू किया जाए।