भोपाल, 18 जून (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के तीन आदिवासी बहुल तीन जिलों- अलिराजपुर, झाबुआ और धार में सिलिकोसिस (सांस की बीमारी) पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, इस बीमारी से मरने वालों की तादाद भी बढ़ रही है। पिछले 10 वर्षो में मरने वालों की संख्या लगभग चार गुनी हो गई है।
यह बात सामाजिक संगठन ‘नई शुरुआत’ द्वारा सिलिकोसिस पीड़ित संघ व जन स्वास्थ्य अभियान के सहयोग से 105 गांवों में किए गए सर्वेक्षण में सामने आई।
राजधानी भोपाल में शनिवार को तीन जिलों के सिलिकोसिस प्रभावित 105 गांव के सर्वेक्षण की रिपोर्ट एक कार्यशाला में तीनों संगठन की ओर से जारी की गई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सिलिकोसिस का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बात का गवाह पिछले वर्षो में हुए सर्वेक्षण हैं।
उनके द्वारा 2005-06 में आदिवासी जिले झाबुआ के सिलिकोसिस प्रभावित 21 गांव का सर्वेक्षण किया था, इसमें पाया गया कि इस बीमारी से 158 लोगों की मौत हुई थी।
जन स्वास्थ्य अभियान के अमूल्य निधि बताते हैं कि सिलिकोसिस का दायरा आदिवासी जिलों में बढ़ता जा रहा है। उनके संगठन ने वर्ष 2008 में अलिराजपुर, झाबुआ और धार के 40 गांव का सर्वेक्षण किया तो पता चला कि उस वर्ष 199 लोगों की मौत हुई थी, जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 503 हो गई और जब वर्ष 2015 में इन तीनों जिलों के 105 गांवों का सर्वेक्षण किया गया तो पता चला कि मरने वालों का आंकड़ा 589 पर पहुंच गया है।
निधि आगे बताते हैं कि वर्ष 2006 में बीमारों का आंकड़ा 489 था जो वर्ष 2015 में बढ़कर 1721 हो गया है। उनका आरोप है कि सरकार इस बीमारी के प्रति गंभीर नहीं है। इतना ही नहीं, इस इलाके में रोजगार के अवसर न होने के कारण बड़ी संख्या में आदिवासी परिवार पलायन कर सीमावर्ती प्रदेश गुजरात चले जाते हैं। उन्हें वहा कार्टज कारखानों में काम करना पड़ता है। नतीजे में उन्हें मिलती है सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी।
बताया गया है कि इस सर्वेक्षण में मार्च 2016 में नई शुरुआत ने सिलिकोसिस पीड़ित संघ व जन स्वास्थ्य अभियान के सहयोग से तीन जिलों के 14 विकास खंडों के 105 गांव में सर्वेक्षण किया। यहां के 743 परिवारों में 1721 सिलिकोसिस पीड़ित मिले थे। इनमें से 589 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी हैं।
इस मौके पर डॉ. एस.आर. आजाद, डॉ. ललित श्रीवास्तव ने सिलिकोसिस के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए सरकारों की ओर से आवश्यक कदम न उठाए जाने पर चिंता जताई। उनका कहना है कि सिलिकोसिस को रोका जा सके इसके लिए एक नीति बनाना होगी और औद्योगिक संस्थानों को ऐसे उपाय करना चाहिए, जिससे सिलिकोसिस के जीवाणु मजदूरों के शरीर में दाखिल ही न हो सकें।
गुजरात जाकर विभिन्न कारखानों में काम करके बीमारी का शिकार बने सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए लड़ी जा रही न्यायालयीन लड़ाई का ब्यौरा देते हुए बताया गया कि वर्ष 2006 में दायर की गई एक याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चार मई 2016 को एक अहम फैसला सुनाया है, इसमें गुजरात सरकार को एक माह में सिलिकोसिस से मरे 238 लोगों के परिजनों को तीन लाख रुपये देने तथा मध्यप्रदेश सरकार को 304 जीवित प्रभावितों के पुर्नवास के निर्देश दिए थे।
गुजरात सरकार ने मुआवजा राशि तीनों जिलों के जिलाधिकारियों को उपलब्ध करा दी है।