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महाराष्ट्र सरकार के इस नए आदेश में मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के अलावा जिला परिषद अध्यक्षों और पार्षदों को भी जन-प्रतिनिधि माना गया है। यानी इन सभी के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी देशद्रोह के दायरे में आएगी। सरकार के सर्कुलर में आईपीसी की जिस धारा 124ए का जिक्र किया गया है, वो देशद्रोह के मामले में लागू होती है।
क्या कहता है देशद्रोह का कानून?
इंडियन पीनल कोड के आर्टिकल 124 A के मुताबिक अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे किसी भी तरीके से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है। कुछ विषेश मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हटाई थी धारा 66 ए
अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में आईटी एक्ट की धारा 66ए के बेजा इस्तेमाल पर उसे तो निरस्त कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने यह साफ किया था कि इसका मतलब ये नहीं है कि किसी को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी है। संविधान भले ही हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी देता है लेकिन संविधान ने उसकी सीमाएं भी तय कर रखी है। उन सीमाओं से बाहर जाकर कही या लिखी गई बातों के लिए कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। कोर्ट के इस फैसले से सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने वालों ने राहत की सांस ली थी लेकिन तब भी ये साफ था कि कुछ भी लिखने की छूट नहीं है। लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार कोर्ट के दिशा-निर्देश के जरिए बोलने वालों की आजादी पर लगाम लगाना चाहता है.
साभार-दैनिक भास्कर