सियोल, 2 जनवरी (आईएएनएस)। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सैनिकों के लिए कोरियाई महिलाओं को जबरन यौन दासियों (कम्फर्ट वीमेन) के रूप में पेश किए जाने के मुद्दे को सुलझाने के लिए सियोल और जापान के बीच हाल ही में हुए एक समझौते के विरोध में दक्षिण कोरियाई शनिवार को सड़कों पर उतर आए।
दोनों पड़ोसी देशों के बीच विश्वयुद्ध के बाद से ही ‘कम्फर्ट वूमेन’ मुद्दे पर विवाद रहा है।
समाचार पत्र कोरिया हेराल्ड की रपट के मुताबिक, 28 दिसम्बर, 2015 को हुए करार के बाद से ही पीड़ितों और उनके समर्थकों द्वारा यह कहते हुए सार्वजनिक विरोध शुरू हो गया था कि इस मामले में जापान लाभ में रहा है।
करार के तहत जापान ने माफी मांगते हुए जीवित बची 46 दक्षिण कोरियाई पीड़ितों को एक अरब येन (करीब 83 लाख अमेरिकी डॉलर) की राशि देने की घोषणा की थी।
दक्षिण कोरिया के विदेशमंत्री युन ब्युंग-से ने कहा कि अगर जापान अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है तो इस समझौते को अंतिम और अडिग माना जाएगा।
इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक, इस दौरान 2,00,000 से अधिक महिलाओं को जापानी सेना के वेश्याघरों में काम करने के लिए मजबूर किया गया था, जिनमें से अधिकांश कोरियाई महिलाएं थीं।
करार के बाद देशभर की 30 से अधिक किशोर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सियोल में मुख्य सरकारी परिसर के सामने संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया और करार को अपमानजनक बताया।
उन्होंने साथ ही जापान सरकार से पीड़ितों के लिए कानूनी मुआवजे और उनके सम्मान में एक स्मारक बनाने की मांग की।
विश्वविद्यालयों के छात्रों के एक समूह ने भी सियोल में जापानी दूतावास के सामने एक अलग संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया, जहां उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाया कि गुरुवार को दूतावास पर उनके द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार करते समय हिंसा का सहारा लिया गया।
उन्होंने कहा, “पुलिस की कार्रवाई, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात रूपी हिंसा के समान है, जिसमें इतिहास को मिटाने की कोशिश की गई।”