नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। भाषा की सादगी और शब्दों का तालमेल ऐसा समागम है, जो माहौल को फूलों की खुशबू की तरह महका देता है। विशेष रूप से जब यह तालमेल हो हिन्दी एवं उर्दू भाषा में पिरोई गई शायरी और गजल का। लफ्जों के फूलों की खुशबू फैलाता कुछ ऐसा नजारा देखने को मिला दिल्ली स्थित इंडिया हेबीटेट सेंटर में, जहां साहित्य व संगीत क्षेत्र में मुकाम कायम कर चुकीं कुछ हस्तियों ने शायरी व गजल के माध्यम से शायर निदा फाजली को श्रद्धांजलि दी। मौका था गैर-सरकारी संगठन साक्षी-सियेट द्वारा आयोजित संध्या ‘लफ्जों के फूल’ का।
डॉ. मृदुला टंडन द्वारा प्रस्तुत इस शायरी व संगीतमयी संध्या का आयोजन गांधी जयंती पर वर्तमान समय के अशांत माहौल में शायर व गीतकार निदा फाजली को श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से किया गया। कार्यक्रम में लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, सुबोध लाल, नाजिम नकवी व कवियत्री ममता किरण एवं गजल गायक शकील अहमद ने फाजली साहब की रचनाएं प्रस्तुत कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी और गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर संगीत द्वारा शांति का संदेश दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत पारम्परिक अंदाज में दीप जलाकर हुई। इसके बाद नाजिम नकवी ने निदा फाजली के साथ जुड़ी अपनी यादों को साझा किया व उनके सफर से सभी को रूबरू कराया। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का शीर्षक फाजली साहब को श्रद्धांजलि देने के लिए सर्वोत्तम है क्योंकि उनके पहले संकलन का नाम ‘लफ्जों के फूल’ ही था।
उन्होंने निदा फाजली की रचना ‘एक लड़की’ प्रस्तुत की। ‘जब तलक वह जिया’ व ‘छोटी सी एक शॉपिंग’ उनकी अन्य प्रस्तुतियां रहीं।
कवियत्री ममता किरण ने भी उनकी दो-तीन रचनाएं प्रस्तुत कीं। उनके बाद कवि सुबोध लाल ने अपने अनुभव साझा किए।
सत्र के अंतिम कवि रहे लक्ष्मी शंकर बाजपयी। उन्होंने बताया कि निदा फाजली हमेशा जिंदगी की बात करने वाले और दुनिया को बदलने की बात करने वाले शायर थे।
गजल गायक शकील अहमद ने निदा फाजली की कुछ अनसुनी रचनाएं भी प्रस्तुत कीं। शकील अहमद ने ‘वृंदावन के कृष्ण-कन्हैया अल्लाह हूं..’ ‘दिल में ना हो जुर्रत, तो मोहब्बत नहीं मिलती..’, ‘बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां..’, ‘मंदिर भी था उसका पता, मस्जिद भी थी उसकी खबर..’ ‘बदला ना अपने आपको जो थे वही रहे..’ और ‘होशवालों को खबर क्या..’ आदि गजलें प्रस्तुत कीं। साथी कलाकारों शौकत हुसैन, अनीस अहमद व अलीम खान ने उनका बखूबी साथ निभाया।
कार्यक्रम की आयोजक डॉ. मृदुला टंडन ने कहा कि निदा फाजली का जन्मदिवस यूं तो 12 अक्टूबर को होता है, लेकिन गांधी जयंती का अवसर है और बापू व निदा दोनों ही शांतिदूत थे, हमेशा इंसानियत व शांति की पहल को तवज्जो देते थे। शायरी व गजल की तहजीब हमें बहुत कुछ सिखाती है। ऐसे में इससे उम्दा अवसर नहीं था, जहां लफ्ज फूलों के रूप में बरसें और शांति का संदेश भी प्रसारित करें।