नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)। किताबों की हमारे जीवन में उपस्थिति और उसके महžव को रेखांकित करते हुए साहित्य अकादेमी ने ‘साहित्य मंच’ के अंतर्गत विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर एक विशिष्ट कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े महžवपूर्ण लोगों ने किताबों से अपने रिश्तों को श्रोताओं से साझा किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसार भारती के सीईओ जवाहर सरकार ने की। कार्यक्रम में एम. श्रीधर, सूचना आयुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग, अर्पणा कौर, प्रख्यात चित्रकार, शोभना नारायण, प्रख्यात कथक नृत्यांगना, राघव चन्द्र, अतिरिक्त सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, भारत सरकार, ए.पी. महेश्वरी, अतिरिक्त महानिदेशक, बी.एस.एफ., ब्रजेश शर्मा, एम.डी. मेडिसिन, राममनोहर लोहिया अस्पताल एवं पंकज वोहरा, प्रख्यात पत्रकार वक्ता के रूप में उपस्थित हुए।
स्वागत भाषण के क्रम में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने किताबों के महžव पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एवं परंपरा का सदियों से वहन करती हुई पुस्तकें हमारे जीवन को प्राचीन, वर्तमान और भविष्य के जीवन से परिचित कराती हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष जवाहर सरकार ने पुस्तक प्रकाशन की विभिन्न समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हुए भारत में पुस्तकों के प्रकाशन को नियमित करने की विभिन्न विधियां बताईं। उन्होंने कहा कि पुस्तकें एक जगह से दूसरी जगह तक जीवन का प्रसार करती हैं और पढ़ने-लिखने से प्यार करने वाले का जीवन समृद्ध करती हैं।
एम. श्रीधर ने अपनी पढ़ी हुई पहली पुस्तक और शब्दों से पहले परिचय को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए बताया कि किताबें हमें प्रेरित करती हैं और हमारे जीवन के उद्देश्यों को निर्धारित करती हैं। उन्होंने अपनी बात अन्ना हजारे और संत रामानुजन के जीवन में किताबों से आए प्रभावों को प्रस्तुत किया। प्रख्यात चित्रकार अर्पणा कौर ने बचपन में अपनी मां अजीत कौर द्वारा दी गई गुरु ग्रंथ साहब में पढ़ी गई विभिन्न संतों की वाणी और अपने जीवन पर उनके प्रभावों को स्पष्ट किया। उन्होंने कबीर, नानक, नामदेव, रैदास, बोधा आदि की वाणियां भी उद्धृत कीं।
शोभना नारायण ने अपने सम्बोधन में दर्शन, साहित्य, संगीत, नृत्य आदि विभिन्न विधाओं की आपसी आवाजाही को रेखांकित किया और स्पष्ट किया कि इस सब में सबसे महžवपूर्ण भूमिका पुस्तकें ही निभाती हैं। उन्होंने अपने जीवन में पढ़ी पहली पुस्तक श्रीमद् भगवत गीता के अध्याय ग्यारह से अपने को प्रभावित बताते हुए जीवन में संपूर्णता प्राप्ति के मार्ग को साझा किया।
उन्होंने कालिदास, कबीर, बिहारी, उमर खैयाम, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, बच्चन, दिनकर आदि साहित्यकारों को याद करते हुए कहा कि किताबें अभी भी हमारा समय रचती हैं। आगे उन्होंने कहा कि तकनीक के इस युग में भी वे छपी हुई किताबें पढ़ना पसंद करती हैं।