नई दिल्ली, 16 अप्रैल (आईएएनएस)। हिंदी के प्रख्यात कवि एवं चिंतक डॉ. कैलाश वाजपेयी को याद करती एक स्मृति सभा का आयोजन गुरुवार को साहित्य अकादेमी में किया गया। केदारनाथ सिंह ने उनके निधन को अपनी निजी क्षति बताते हुए उनके आवाज के जादू को याद किया और लखनऊ में 1954 मंे हुई पहली मुलाकात का जिक्र किया।
विश्वनाथ त्रिपाठी ने उनके काव्य संग्रहों के विचित्र नामों की चर्चा करते हुए उनकी कविताओं को करुणा की तलाश बताया। प्रभाकर श्रोत्रिय ने उन्हें हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ चिंतक बताते हुए कहा कि उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उन्हें ज्यादा से ज्यादा पढ़े।
गंगाप्रसाद विमल ने उन्हें केवल अध्यात्म का कवि मानने पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि वे अतीतगामी नहीं थे, बल्कि सृष्टि के सभी बड़े और आधुनिक सवाल उनकी कविता में थे।
वेद प्रताप वैदिक ने उनके दर्शन के अपार ज्ञान को याद करते हुए उनसे मिलने को सत्संग की उपाधि देते हुए उनके ‘मलंगपन’ की चर्चा की।
गगन गिल ने उन्हें बंधु मित्र की तरह याद करते हुए कहा, “वो मुझे अंधेरे से उजाले में ले जाने वाले कवि लगते थे।” उन्होंने उनकी कविता ‘अभी चला जाऊं तो जाऊं’ का पाठ भी किया।
दिविक रमेश ने उनको अनन्य जिज्ञासु के रूप में याद करते हुए कहा कि वे हिंदी के सबसे बड़े ‘इंटेलेक्चुल’ कवि थे। लीलाधर मंडलोई ने आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए उनके किए महत्वपूर्ण कार्यों को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी।
हास्य कवि अशोक चक्रधर ने उनकी असीमित ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि वे युवाओं से लगातार संपर्क में रहते थे।
कवयित्री अनामिका ने उनकी कविता के स्वर को ‘हवा के खिलाफ’ के रूप में याद किया।
साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने उनके दार्शनिक पक्ष और उन पर भारतीय अद्वैत और बौध दर्शन के गहरे प्रभाव को लक्षित करते हुए उनके निधन को हिंदी कविता की गहरी क्षति बताया।
कैलाश वाजपेयी की पुत्री अनन्या वाजपेयी ने उन्हें अपने पिता और मित्र के रूप में याद किया।
स्मरण सभा के अंत में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के.श्रीनिवासराव द्वारा शोक प्रस्ताव पढ़ा गया और एक मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
स्मृति सभा के प्रांरभ में साहित्य अकादेमी द्वारा सुरेश कोहली के निर्देशन में कैलाश वाजपेयी पर तैयार नवनिर्मित फिल्म भी प्रदर्शित की गई।
स्मृति-सभा में केकी एन दारूवाला, आशीष नंदी, मधु किश्वर, नमिता गोखले, हरीश त्रिवेदी, मंगलेश डबराल, सुरेश ऋतुपर्ण, अरुण माहेश्वरी, विमलेश कांति वर्मा, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, सुषमा भटनागर, मीराकांत, सूर्यप्रसाद दीक्षित, रणजीत साहा आदि कई महत्वपूर्ण लेखक, पत्रकार एवं प्राध्यापक उपस्थित थे। सभा का संचालन अकादेमी के उपसचिव ब्रजेंद्र त्रिपाठी ने किया।