चंडीगढ़, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। बॉलीवुड या अन्य फिल्मों में सिख धर्म या सिख किरदार दिखाए जाने पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) और अन्य सिख समूहों की भृकुटी तनती जा रही है।
चंडीगढ़, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। बॉलीवुड या अन्य फिल्मों में सिख धर्म या सिख किरदार दिखाए जाने पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) और अन्य सिख समूहों की भृकुटी तनती जा रही है।
अब हरिंदर सिंह सिक्का निर्मित आगामी फिल्म ‘नानक शाह फकीर’ उनके निशाने पर है। 17 अप्रैल को रिलीज होने वाली यह फिल्म सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के जीवन और उनके काल को दर्शाती है। एसजीपीसी ने इसकी रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है। कान्स फिल्म फेस्टिवल और सिख फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म ने खूब वाहवाही लूटी है।
अब एसजीपीसी, अकाल तख्त और दल खालसा एवं ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफएफ) जैसे कट्टरपंथी सिख समूह फिल्म पर आपत्ति जताते हुए इसे रिलीज किए जाने पर रोक की मांग कर रहे हैं।
दल खालसा नेता कंवरपाल सिंह ने आईएएनएस को बताया, “कहा गया है कि ‘नानक शाह फकीर’ फिल्म सिख धर्म के मूल सिद्धांतों पर एक हमला है। सिख लोग फिल्म या अन्य किसी प्रारूप में अपने धर्म का अपमान नहीं होने दे सकते।”
एसजीपीसी अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि यह फिल्म सिख सिद्धांतों का अनादर करती है।
हालांकि, फिल्म के निर्माता हरिंदर सिंह सिक्का का दावा है कि यह सारा प्रकरण ‘राजनीतिक एजेंडे’ से प्रेरित है। मक्कड़ ने सिक्का के दावे का यह कहते हुए खंडन किया है कि एसजीपीसी ने कभी इस फिल्म को हरी झंडी नहीं दी।
यह कोई पहली फिल्म नहीं है, जिस पर एसजीपीसी की भृकुटी तनी है। इससे पहले हैरी बावेजा निर्देशित ‘चार साहिबजादे’ (2014) भी उसकी वक्रदृष्टि की भेंट चढ़ गई थी। यह फिल्म 10वें सिख गुरु गोबिंद सिंह के बेटों के बलिदान के बारे में थी।
सिक्का ने एक बयान में कहा, “अब जो कुछ हो रहा है, वह कोरी राजनीति और बाहरी तत्वों की दबाव नीति है, जो चार साहिबजादे की रिलीज के भी खिलाफ थे।”
एसजीपीसी ने हाल के वर्षो में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा पास की गई फिल्मों पर भी आपत्ति जताई।
हाल में विवादों में आईं फिल्मों में ‘एमएसजी-द मैसेंजर'(2015), ‘सिंह इज किंग’ (2008), ‘सन ऑफ सरदार’ (2008) और ‘जो बोले सो निहाल’ (2005) शामिल हैं।
एसजीपीसी सिख किरदारों वाली फिल्मों के खिलाफ नहीं है। वह चाहता है कि सिख धर्म से जुड़ी फिल्में उसकी समिति को दिखाई जानी चाहिए।
मक्कड़ ने कहा, “सिख धर्म और सिखों से जुड़ी किसी भी चीज को सही तरीके से पेश किया जाना चाहिए और उस पर एसजीपीसी की स्वीकृति ली जानी चाहिए।”