संयुक्त राष्ट्र, 24 फरवरी (आईएएनएस)। भारत ने सुरक्षा परिषद को स्थायी सदस्यों का गैर-लोकतांत्रिक संगठन करार दिया है, साथ ही इन सदस्य देशों पर आरोप लगाया है कि ये अपने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल इस संस्था के सिद्धांत तय करते हैं और आतंकवाद से निपटने के मामले में इनका रवैया चयनात्मक होता है।
सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी ने सोमवार को आरोप लगाया कि सुरक्षा परिषद 9/11 के मद्देनजर पारित किए गए प्रस्ताव के क्रियान्वयन के लिए कड़े कदम उठाने में नाकाम रहा है, जिसके तहत सभी देशों पर आतंकवाद के खिलाफ काम करने की बाध्यता है।
उन्होंने कहा, “जघन्य आतंकवादी हमले के साजिशकर्ताओं को सूचीबद्ध किया जाना शक्तिशाली देशों की मर्जी पर निर्भर करता है। सूचीबद्ध व्यक्तिों और संगठनों द्वारा प्रतिबंधों का सार्वजनिक तौर पर उल्लंघन किए जाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाए गए।”
मुखर्जी सुरक्षा परिषद में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों पर केंद्रित ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने’ पर आयोजित एक चर्चा में बोल रहे थे। परिषद के चैम्बर में गोलमेज पर चारों ओर बैठे सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के बीच उन्होंने उनके लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति बचनबद्धता का सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, “यह अजीब है कि परिषद में लोकतंत्र और कानून की दुहाई दी जाती है, लेकिन यह खुद कुछ विशेषाधिकार प्राप्त देशों का गैर-लोकतांत्रिक गढ़ बन गया है।”
मुखर्जी ने कहा, “लोकतंत्र का तर्क और विश्वभर में लोगों के दुख को देखते हुए परिषद में तत्काल सुधार की जरूरत है। अगर हमें इतिहास से सही सीख लेनी है तो हमें इसी साल इस पर काम करना होगा।”
भारत सुरक्षा परिषद में सुधार करने और स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाते हुए इसे अधिक प्रतिनिधित्वकारी बनाने की मांग करता रहा है, जिसके स्थायी सदस्यों में अभी सिर्फ चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और अमेरिका हैं, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता माने जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या 1945 में इसकी स्थापना के वक्त 51 थी जो आज बढ़कर 193 हो गई है, लेकिन सुरक्षा परिषद में गैर स्थायी सदस्यों में सिर्फ चार को ही जोड़ा गया है।