नई दिल्ली, 7 मार्च (आईएएनएस)। स्वास्थ्य संगठनों ने सोमवार को दुनिया भर में लैंगिक समानता की मांग उठाते हुए कहा कि खासकर अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाया जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि दुनिया भर की महिलाओं की विशिष्ट स्वास्थ्य जरूरतें होती हैं, जिन पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। अकेले दक्षिण पूर्व एशिया में 2015 में करीब 61,000 महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत हो गई।
शोधकर्ताओं ने पाया कि कई देशों में लगातार प्रयासों के बावजूद दक्षिण एशिया क्षेत्र की करीब 38 फीसदी महिलाओं को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार लैंगिक आधार पर हिंसा का सामना करना पड़ता है।
यह जानकारी द एसोसिएट चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन के सर्वेक्षण में सामने आई है।
डब्ल्यूएचओ के दक्षिण एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक पूनम खेत्रपाल ने कहा, “महिलाओं को उनकी देखभाल की जरूरत मुहैया कराने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना सबसे प्रभावी तरीका होगा। सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधाएं ही महिलाओं को आर्थिक और शारीरिक बंधन तोड़कर उनके स्वास्थ्य की देखभाल करने की क्षमता को बढ़ांएगी। “
उन्होंने कहा कि घरों में होने वाले प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 16 लाख महिलाओं की हर साल मौत हो जाती है। उनका कहना है कि कई घरों के आर्थिक ढांचे की वजह से एक महिला या लड़की के स्वास्थ्य के उपर खर्च करने से कहीं ज्यादा प्राथमिकता दूसरी चीजों की दी जाती है।
इस साल के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की विषय वस्तु लैंगिक समानता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मंगलवार को मनाया जाएगा।
पापुलेशन फाउंडेशन की कार्यकारी अध्यक्ष पूनम मुत्तरेजा ने जोर दिया कि महिलाओं के सशक्तिकरण और लैंगिक असमानता, भेदभाव और हिंसा को दूर करने के लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार तक उनकी पहुंच सुनिश्चित कराना जरूरी है।
मुत्तरेजा ने कहा, “महिलाओं की लैंगिक समानता और सशक्तिकरण पर जोर देना होगा। खासतौर से प्रजनन, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन सुविधाओं तक उनकी स्वैच्छिक पहुंच और उनकी प्रजनन क्षमता पर उनका नियंत्रण होना बेहद जरूरी है।”
उन्होंने बताया कि अभी भी लड़कियों की कम उम्र में जबरदस्ती शादी करा दी जाती है, जो कि उनके अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और हिंसा का एक विनाशकारी रूप है।
एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा हाल में किए गए सर्वेक्षण से यह सामने आया है कि एक चौथाई कामकाजी महिलाएं, खासतौर से जो निजी क्षेत्र में अलग-अलग स्तरों पर काम कर रही हैं, वे अपनी नौकरी को जिन कारणों से छोड़ना चाहती हैं, उनमें लैंगिक भेदभाव और कार्यस्थल पर उत्पीड़न प्रमुख हैं।
भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य की हालत पर जार्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के निदेशक विवेकानंद झा का कहना है, “गैर-संचारी रोग (एनसीडी) से भारत में सबसे ज्यादा महिलाओं की मृत्यु होती है। साल 2013 में इससे कुल 60 फीसदी महिलाओं की मौत हुई जबकि साल 1990 में यह आंकड़ा 22 फीसदी था।”