अहमदाबाद, 1 दिसम्बर (आईएएनएस)। गुजरात उच्च न्यायालय ने पटेलों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे नेता हार्दिक पटेल और उनके पांच साथियों पर से ‘सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ का आरोप हटा लिया है। लेकिन, इन सभी पर देशद्रोह का आरोप लगा रहेगा।
न्यायाधीश जे.बी.परदीवाला ने इन छह लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में से सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने, धर्म-जाति के आधार पर समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने के आरोप हटाने का आदेश दिया।
लेकिन, अदालत ने देशद्रोह का आरोप नहीं हटाया। इस आरोप में उम्र कैद या 10 साल की कैद हो सकती है।
प्राथमिकी अपराध शाखा ने दर्ज की थी। हार्दिक (22) के पिता सुरेश पटेल ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि आरक्षण के लिए आंदोलन देशद्रोह या सरकार के खिलाफ युद्ध नहीं हो सकता।
सरकारी अभियोजक मीतेश अमीन ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि अपराध शाखा ने जो फोन काल इंटरसेप्ट की हैं, उनके आधार पर ये आरोप लगाए गए हैं। 200 फोन काल रिकार्ड की गईं, जिनमें से कई में हार्दिक और उनके पांचों साथी अपने समर्थकों से पुलिसवालों की हत्या, रेल पटरियों को उड़ाने जैसी ‘कटु’ बातें कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 25 अगस्त को हार्दिक की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर 35 लाख संदेश डाले गए। इनमें पटेल समुदाय से हिंसा करने को कहा गया था। इसी का नतीजा राज्य में हुई हिंसा थी, जिसमें एक पुलिसकर्मी और सात नागरिकों की मौत हुई थी।
हार्दिक के वकील बी.एम.मंगुकिया ने कहा कि लोगों को अपनी आवाज उठाने का पूरा हक है। अगर ऐसा करने के दौरान वे उत्तेजित हो जाते हैं तो इसका मतलब देशद्रोह या सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना नहीं हो सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रदर्शन अगर हिंसक थे, तो भी ये भाजपा की चुनी हुई सरकार के खिलाफ थे न कि सरकार की संप्रभुता के खिलाफ।