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 ेसंघर्ष से भरा है पलायन से विश्व चैम्पियनशिप तक रमाला का सफर (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Tuesday , 13 May 2025

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ेसंघर्ष से भरा है पलायन से विश्व चैम्पियनशिप तक रमाला का सफर (साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 11 नवंबर (आईएएनएस)। एक वक्त ऐसा था, जब सोमालिया गृहयुद्ध की आग में जल रहा था। इस अफ्रीकी देश की राजधानी होने के कारण मोगादीशू सबस अधिक इसकी चपेट में था। 1990 के दशक इस शहर से एक परिवार का पलायन हुआ था और यह पलायन इस देश की पहली महिला अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज रमाला अली के उद्भव का कारण बना था।

नई दिल्ली, 11 नवंबर (आईएएनएस)। एक वक्त ऐसा था, जब सोमालिया गृहयुद्ध की आग में जल रहा था। इस अफ्रीकी देश की राजधानी होने के कारण मोगादीशू सबस अधिक इसकी चपेट में था। 1990 के दशक इस शहर से एक परिवार का पलायन हुआ था और यह पलायन इस देश की पहली महिला अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज रमाला अली के उद्भव का कारण बना था।

मोगादीशू में हुए एक बम हमले में रमाला के 12 साल के भाई की मौत हो गई और इसके कारण उनकी मां को परिवार सहित घर को छोड़कर ब्रिटेन में शरण लेना पड़ा था। रमाला उस समय दुधमुंही थीं लेकिन ब्रिटेन जाने के बाद जो कुछ उनके साथ हुआ, उसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।

ब्रिटेन पहुंचने तक का रमाला के परिवार जा सफर मुश्किलों भरा था। लगभग नौ दिनों तक नाव में सफर करने के बाद रमाला का परिवार और अन्य लोग शरणार्थी बनकर केन्या पहुंचे और फिर संयुक्त राष्ट्र की मदद से उन्होंने इंग्लैंड में शरण ली। यहीं रमाला बड़ी हुईं और मुक्केबाजी सीखी। शुरुआत में तो मुक्केबाजी उनके लिए वजन घटाने का साधन था लेकिन धीरे-धीरे यह उनके लिए एक जुनून बन गया, जिसे आज वह जी भर कर जी रही हैं।

अपने घर को छोड़कर दूसरे देश आने की परेशानी के बारे में रमाला ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, “मेरे लिए यह अधिक मुश्किल नहीं था, क्योंकि उस मैं बहुत छोटी थी। हालांकि, मेरी बड़ी बहन के लिए यह मुश्किल था। वह 16 साल की थी और उन्हें अपने सभी दोस्तों को पीछे छोड़कर नई दुनिया में आना पड़ा। नए देश में नई शुरुआत करनी पड़ी। हमें भाषा को समझने में संघर्ष करना पड़ा।”

मुक्केबाजी की शुरुआत के बारे में उन्होंने कहा, “स्कूल से मैंने मुक्केबाजी की शुरुआत की। सोमालिया का खाना बहुत अच्छा था और इस कारण मेरा वजन काफी बढ़ गया था। पलायन के बाद जब हम ब्रिटेन आए और नए स्कूलों में गए, तो मुझे कई बच्चों ने वजन को लेकर ताने कसे और परेशान किया। इसी कारण मैंने वजन घटाने के लिए मुक्केबाजी शुरू की।”

उन्होंने कहा, “मुक्केबाजी से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और इसके जरिए मैं किसी के सामने भी निडर होकर खड़ी हो सकती थी। इसी कारण मैने नए देश में नए दोस्त भी बनाए। हालांकि, परिवार का समर्थन मुझे नहीं मिला था।”

अपने जुनून को पूरा करते हुए रमाला के जीवन में वो पल भी आया, जब उन्होंने एक मुक्केबाज के रूप में अपनी पहचान भी कायम की। 2016 में वह ब्रिटिश राष्ट्रीय चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली मुस्लिम महिला मुक्केबाज बनीं।

रमाला के लिए यह पल सबसे अहम भी था और सबसे मुश्किल भी। उन्होंने कहा, “मैं जब नेशनल फाइनल्स में पहुंची तो मेरा साथ देने वाला मेरे परिवार का एक भी व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था। मेरे कुछ दोस्त थे। मेरी विपक्षी का परिवार उनके समर्थन के लिए आया था। उसके पिता ही उसके कोच थे। ऐसे में मुझे बहुत निराशा हुई कि उसके पास इतना समर्थन है और मुझे अपने नेशनल फाइनल्स में खेलने की बात भी मेरे परिवार से छुपानी पड़ी।”

रमाला के परिवार में उनकी मां अनीसा माये मालिम और इमाम पिता को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि उनकी बेटी मुक्केबाजी करे, क्योंकि इसमें उन्हें छोटे कपड़े पहनने पड़ते थे और यह बात रमाला को बहुत दुखी करती थी। बावजूद इसके उन्होंने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा।

रमाला ने आज दुनियाभर में नाम कमाया है। उनका परिवार भी आज उनके साथ है और उन्हें सबसे बड़ी खुशी है कि उनकी मां इस बात से अब खुश हैं। हालांकि, अब भी समुदाय में कुछ लोग उनका समर्थन नहीं करते हैं।

इस पर रमाला ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कुछ लोग सोचते हैं कि महिलाओं का काम घर और बच्चे संभालना है। विश्व चैम्पियनशिप में प्रतिस्पर्धा का स्तर दर्शाता है कि महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं। हम लोग अन्य महिलाओं के लिए भी रास्ता बना रहे हैं, ताकि वह इस खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकें। मुझे लगता है कि जो लोग महिलाओं की मुक्केबाजी के खिलाफ हैं, उन्हें यह चैम्पियनशिप देखनी चाहिए। इससे उनकी सोच बदलेगी।”

बकौल रमाला, “हम 1960 के दशक में नहीं रह रहे हैं। यह 21वीं सदी है। मेरी मां ने भी सोचा था कि मेरा मुक्केबाजी करना अच्छा नहीं लेकिन वह अब मेरा समर्थन करती हैं। अगर मेरी मां की सोच बदल सकती है, तो किसी की भी सोच बदल सकती है।”

जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा के रूप में पूछे जाने पर रमाला ने पांच बार की विश्व चैम्पियन एमसी मैरी कॉम का नाम लिया। उन्होंने कहा, “मैरी कॉम और मेरे जीवन का संघर्ष एक जैसा ही रहा। उनके परिवार ने भी शुरुआत में उनका समर्थन नहीं किया था। उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धियां हासिल की और वह इस समय में महिला मुक्केबाजी का चेहरा हैं, तो ऐसे में वह सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। मुझे इससे उम्मीद मिली कि एक दिन मैं उनकी तरह बनूंगी और अन्य लोग मुझे देखते हुए प्रेरणा लेंगे।”

रमाला की मां ने उनका समर्थन तो किया, लेकिन एक शर्त भी रखी कि वह सोमालिया के लिए मुक्केबाजी करेंगी। अपनी मां की इस इच्छा को पूरा करते हुए वह पिछले साल से सोमालिया का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। अपने पति और कोच रिचर्ड मूरे की मदद से उन्होंने सोमालिया में मुक्केबाजी महासंघ की स्थापना भी की। मूरे अब सोमालिया की राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच हैं।

सोमालिया में रमाला ने मुक्केबाजी महासंघ का निर्माण तो कर लिया है, लेकिन इसमें अब भी सुविधाओं की कमी है। उन्होंने कहा कि देश में संसाधन की कमी है और इस कारण यहां मुक्केबाजी थोड़ी मुश्किल है।

उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी महासंघ (एआईबीए) में चल रहे विवादों के कारण 2020 टोक्यो ओलम्पिक से मुक्केबाजी को हटाए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इस बारे में रमाला ने कहा, “2020 टोक्यो ओलम्पिक से मुक्केबाजी के हटना शर्मनाक है। कई सारे लोग हर दिन मुक्केबाजी में अपने जुनून के लिए मेहनत करते हैं, ताकि उन्हें ओलम्पिक में खेलने का मौका मिले। ओलम्पिक सबसे बड़ा मंच है, जहां वे अपनी प्रतिभाओं को दर्शा सकते हैं। अगर उन्हें मौका नहीं मिलेगा, तो यह शर्मनाक है। इससे मुक्केबाजों की संख्या में कमी आ सकती है, लेकिन आशा है कि ऐसा न हो।”

रमाला को अस्थमा की समस्या है, लेकिन इसके बावजूद वह अपने लक्ष्य को हासिल करने दिल्ली की आबो हवा में आई हैं। यह साफ दर्शाता है कि वह किस प्रकार अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है। वह 15 नवम्बर से शुरू हो रही आईबा विश्व चैम्पियनशिप में अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने आई हैं। इंदिरा गांधी स्टेडियम परिसर में स्थित केडी जाधव हॉल मे होने वाली इस चैम्पियनशिप में 70 देशों की 300 से अधिक महिला मुक्केबाज हिस्सा ले रही हैं।

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