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3डी प्रिंटिंग मधुमेह के इलाज में मददगार

लंदन, 28 मई (आईएएनएस)। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि टाइप वन मधुमेह के इलाज में 3डी प्रिंटिंग कैसे सहायक हो सकता है।

3डी प्रिंटिंग तकनीक को बायोप्लॉटिंग के नाम से भी जाना जाता है। इसकी सहायता से शोधकर्ता अब अपने उस प्रयास में एक पायदान ऊपर पहुंच गए हैं, जहां वे मधुमेह के मरीजों को हाइपोग्लैकेमिक परिस्थिति (रक्त में शर्करा की मात्रा का स्तर कम होना) का अनुभव दे सकते हैं।

शोध में यह बताया गया है कि कैसे पैंक्रियाज में बनने वाले इंसुलिन और ग्लुकैगोन के निर्माण के लिए उत्तरदायी विशेष कोशिका क्लस्टर्स को 3डी प्रिंटिंग की सहायता से सफलतापूर्वक स्कैफोल्ड में बदला जा सकता है।

आशा है कि टाइप वन मधुमेह के मरीजों के शरीर में स्कैफोल्ड को प्रत्यारोपित किया जा सकता है, जिससे उनके शरीर में रक्त में शर्करा का स्तर संतुलित रहे।

आइसलेट कोशिकाएं, जिन्हें आइसलेट ऑफ लैंगरहांस भी कहते हैं, वे पैनक्रियाज कोशिकाओं की क्लस्टर्स होती हैं, जो शरीर के अंदर रक्त में शर्करा की मात्रा के स्तर को भांपकर इसे संतुलित करने के लिए इंसुलिन प्रवाहित करती हैं।

नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटि के प्रोफेसर वैन एपेलडूर्न ने कहा, “हमने शोध में पाया कि जब आइसलेट कोशिकाएं एक बार 3डी स्कैफोल्ड में संशोधित होकर वापस आती हैं, तो उसके बाद उनमें इंसुलिन प्रवाहित करने और ग्लूकोज के स्तर के अनुसार प्रतिक्रिया देने की क्षमता आ जाती है।”

स्कैफोल्ड मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित होने के बाद यह भी सुनिश्चित करता है कि आइसलेट कोशिकाएं शरीर में अनियंत्रित तरीके से पलायित न हों।

यह शोध जर्नल बायोफेब्रिकेशन में प्रकाशित हुई है।

3डी प्रिंटिंग मधुमेह के इलाज में मददगार Reviewed by on . लंदन, 28 मई (आईएएनएस)। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि टाइप वन मधुमेह के इलाज में 3डी प्रिंटिंग कैसे सहायक हो सकता है।3डी प्रिंटिंग तकनीक को बायोप्लॉटिंग के नाम स लंदन, 28 मई (आईएएनएस)। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि टाइप वन मधुमेह के इलाज में 3डी प्रिंटिंग कैसे सहायक हो सकता है।3डी प्रिंटिंग तकनीक को बायोप्लॉटिंग के नाम स Rating:
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