जहां हमारा मन जाकर बार-बार अटक जाता है, मन को कुछ खोने का डर और मिलने की आस लगी रहती है, जो हमें सुखी-दुखी, मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय देती है, वही हमारी माया है। यानी किसी शख्स के संसार में उलझे रहने की वृत्ति का नाम माया है। माया अपनी कलाकारी से जीवों को खुद में उलझाकर जन्म-मरण के चक्र में बांधे रखती है। जब तक मन माया के जाल में फंसा रहता है, मुक्ति मुमकिन नहीं। माया से ऊपर उठना मुक्ति है। संसार जितना दिखाई देता है, वह और कुछ नहीं, बल्कि माया का जाल है।सुरक्षित गोस्वामी
आध्यात्मिक गुरु
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