प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मायनों में 29 सितंबर 2016 को उन तमाम रेखाओं को पार कर दिया। हमारी भावी पीढ़ी एक बेहतर और सच्चे तरीके से आंक पाएगी लेकिन गुरुवार को हमारे सुरक्षाबलों द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक उन दोनों ही संदर्भो में गेम चेंजर साबित हुई कि हम स्वयं को किस तरह देखते हैं और दुनिया हमें किस तरह देखती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मायनों में 29 सितंबर 2016 को उन तमाम रेखाओं को पार कर दिया। हमारी भावी पीढ़ी एक बेहतर और सच्चे तरीके से आंक पाएगी लेकिन गुरुवार को हमारे सुरक्षाबलों द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक उन दोनों ही संदर्भो में गेम चेंजर साबित हुई कि हम स्वयं को किस तरह देखते हैं और दुनिया हमें किस तरह देखती है।
लेकिन यहां सवाल यह है कि भारत को इस सर्जिकल स्ट्राइक से क्या हासिल हुआ?
प्रथम, एक देश के रूप में हमने अपना आत्म सम्मान वापिस पा लिया। फिर चाहे वह भारतीय संसद पर हमला हो, 26/11 हमला, मुंबई ट्रेन विस्फोट, पठानकोट या उड़ी हमला ही क्यों ना हो। हर हमले पर हमें असहाय और नाउम्मीदी में जीना पड़ता था। हम अपने हाथ मलते रह जाते थे, युद्ध की तैयारियां करते थे, सीमा पर फौजें भेजते थे, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मुद्दे उठाते थे, दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब करते थे, राजनयिक संबंध तोड़ने की बातें करते थे और सिर्फ बातें ही करते थे और हमने अभी तक सिर्फ यही किया है। यह हमें हमारी ही आंखों में कमजोर, कायराना और असहाय बनाता है। सर्जिकल स्ट्राइक ने हमें इस अजीब और लगभग शर्मसार कर देने वाली स्थिति से बाहर निकाला है।
दूसरा, यही समान संदेश विश्व को भी गया है। जब से भारत और पाकिस्तान ने अपने परमाणु शक्तियों को सार्वजनिक मंच पर जगजाहिर किया है तभी से भारत की प्रतिक्रिया पिछले 20 वर्षो से एकसमान नीरस ही थी। वैश्विक नेताओं ने हमें हमारी शर्मिदगी को सलाहें देकर छिपाने में मदद की है लेकिन कहीं न कहीं उनकी हमारी तरफ अवमानना भरी भावनाएं रही होंगी कि भारत एक नरम रुख अख्तियार करने वाला देश है जिसमें बदला लेने की हिम्मत नहीं है।
हम दूसरों से हमें सम्मान देने और हमें गंभीरता से लेने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जब हमारा रुख एक उग्र और आक्रामक पड़ोसी के प्रति कायराना रहा है? एक या दो बार नहीं बल्कि हमेशा। कोई भी हमेशा परिपक्व और व्यावहारिक नहीं हो सकता। लेकिन हां हमारी अर्थव्यवस्था में हमें इस स्थिति से बाहर निकालने की क्षमता जरूर है। यदि हम वहां रहना चाहते हैं और एक दिन वैश्विक शक्ति बनना चाहते हैं तो हमें एक देश के रूप में देखे जाने की जरूरत है जो अपनी रक्षा स्वयं कर सके।
सुपर पावर बनना भूल जाइए। किसी स्वाभीमानी सार्वभौमिक देश से यही उम्मीद की जा सकती है।
तीसरा, आखिरकार हमने पाकिस्तानी सीमा पार की और उनके परमाणु हथियारों को चुनौती दी। यह काफी भद्दा था कि जब भी हम उसे उनकी भाषा में जवाब देने की कोशिश करते थे तो पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों से हमें डराता रहता था। पाकिस्तान और उसके नॉन स्टेट एक्टर्स हमारी हर गतिविधियों पर नजर रखते हैं और हमारी हर प्रतिक्रिया पर पाकिस्तान हमें परमाणु हथियारों की धौंस दिखाकर ब्लैकमेल करता था।
भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर यह दिखा दिया है कि वह कड़े कदम उठाने के लिए तैयार हैं। अब यहां से भारत सामान्यतौर पर ढीला रवैया नहीं उठाएगा और पाकिस्तान को अपनी नीतियों के बारे में दोबारा सोचने पर बाध्या होना पड़ेगा। क्योंकि भारत ने सिर्फ एक हमले में 20 वर्षो की राजनयिक आक्रामकता को किनारे कर दिया है। अब पाकिस्तान स्थित आतंकवादी और उनके आका किसी भी हमले पर भारत के रुख को लेकर सुनिश्चित हो सकते हैं।
सर्जिकल स्ट्राइक ने इस नीति की धज्जियां उड़ा दी हैं। अब रावलपिंडी यह जानता है कि उसकी हर गतिविधि की उसे कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए उसे अपनी हर रणनीति पर दोबारा सोचना पड़ेगा।
चौथा, भारत की कार्रवाई रैंबो की तरह कूद-फांद वाली नहीं है। जो लापरवाही भरी हो। वास्तव में यह पूरा ऑपरेशन भारत की परिपक्वता और उसके संयम को दर्शाता है। भारतीय कमांडोज ने सीमा पार आतंकवादी शिविरों पर निशाना साधा। भारत ने पाकिस्तानी सेना को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
इस कार्रवाई के साथ भारत ने कई संदेश भेजे हैं जिसमें पहला यह है कि भारत खुद पर हुए हमले पर बखूबी कार्रवाई कर सकता है।
लेकिन अब सबके दिमाग में यह सवाल है : कि अब आगे क्या? भारत ने जो करना था वह कर चुका है और स्पष्ट रूप से कह चुका है कि हम और सर्जिकल स्ट्राइक नहीं होंगे। भारत यकीनन इसे बढ़ाना नहीं चाहता।
इसलिए अब फैसला पाकिस्तान को करना है। वह पहले ही सर्जिकल स्ट्राइक के भारत के दावों को नकार चुका है। वह अपने पक्ष पर दृढ़ है। लेकिन यदि पाकिस्तान भी इसी तरह की कुछ कार्रवाई करता है तो क्या होगा? यह समय अनिश्चितता से भरा है और पाकिस्तानी सेना में कई तरह के बदलाव भी अधूरे पड़े हैं क्योंकि जनरल राहीफ शरीफ का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है।
अगर भारत पर एक और आतंकवादी हमला हो गया तो फिर क्या होगा? इस पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी? और इससे पूरी स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इन सवालों के जवाब देने मुश्किल हैं लेकिन जो स्पष्ट है वह यह है अब इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चीजें समान नहीं रहेंगी।
हमें यकीनन शांति की राह पर चलना चाहिए लेकिन युद्ध सहित हर तरह के हालात के लिए भी तैयार रहना होगा।