कोलकाता, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। मधुमक्खी पालकों, किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक वर्ग ने देश में जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती करने को लेकर यहां विरोध प्रदर्शन किया।
जीएम (जेनिटिकली माडिफाएड) सरसों का यदि सार्वजनिक तौर पर विरोध नहीं किया गया तो यह नियामक जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा जारी देश की पहली खाद्य फसल होगी।
इसके विरोध में गैर सरकारी संगठन, कार्यकर्ता और किसान जीएम मुक्त पश्चिम बंगाल ‘सरसों सत्याग्रह’ के बैनर तले एकजुट हुए हैं। उन्होंने इसे लेकर नुक्कड़ नाटक और चर्चा आयोजित करने के साथ ही आनुवांशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थो के बहिष्कार पर जोर दिया।
विरोध प्रदर्शन का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर लोगों के साथ मिलकर किया गया था। इसमें भाग लेने वाले लोगों ने जीएम फसल के खिलाफ एक याचिका पर भी हस्ताक्षर किया।
महात्मा गांधी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की कार्यकर्ता रूबी रक्षित ने आईएएनएस से कहा, “सरसों के तेल का इस्तेमाल खाने में और बच्चों की मालिश में किया जाता है। हमें जीएम सरसों को खारिज करने और अपने भोजन को सुरक्षित रखने का अधिकार है।”
विज्ञान सोसाइटी के सदस्यों और उनके लोगों ने हाथ में पोस्टर और बैनर लेकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जैविक तरीके से खेती करने और जीएम भोज्य पादार्थो को नहीं खरीदने की वकालत की।
बंगाल के कई जिलों के मधुमक्खी पालकों ने कहा कि यह फसल मधुमक्खियों के लिए घातक साबित होगी। जो सब्जियों, मसालों, बागवानी, सेब, आडू, स्ट्राबेरी के परागण के लिए जरूरी होती हैं।
आंदोलनकारियों ने कहा, “जीन में परिवर्तन की वजह से फसल में तीन जीन होंगे, जो मृदा जीवाणु से लिए गए हैं और उनमें से एक जीन को बार जीन कहा जाता है। बार जीन पौधे को खरपतवार नाशी (घास मारने वाला) के लिए प्रतिरोधी बना देगा। इसका ब्रांड नाम बास्ता है। इसका मतलब सरसों की खेती में खरपतवार नाशी का प्रयोग ज्यादा होगा और यह किसानों की लागत बढ़ा देगा।”