नई दिल्ली, 7 सितम्बर (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम में हालिया संशोधन को चुनौती देने वाली तीन याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। इस संशोधन के जरिए शिकायत की स्थिति में तत्काल गिरफ्तारी करने के प्रावधान को बहाल किया गया है।
न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा, लेकिन इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा, “हम दूसरे पक्ष की बात सुने बगैर रोक नहीं लगा सकते हैं।”
अगली सुनवाई छह सप्ताह तक के लिए टाल दी गई है।
याचिकाकर्ताओं, वकीलों पृथ्वी राज चौहान, प्रिया शर्मा और एक गैर सरकारी संगठन ने संसद के हाल में संपन्न हुए मॉनसून सत्र में किए गए संशोधन को चुनौती दी है, जिसके जरिए सांसदों ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में तत्काल गिरफ्तारी पर प्रतिबंध के प्रावधान को हटा दिया।
याचिका में कहा गया है कि नया संशोधन समानता, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन है।
हालिया संशोधन की तुलना शाह बानो मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को पलटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा लाए गए संशोधन से करते हुए याचिकाकर्ता वकीलों ने गिरफ्तारी करने के प्रवाधान को मनमाना बताया है और कहा कि इसका निर्दोष लोगों के खिलाफ दुरुपयोग किया जाएगा।
शाहबानो मामले में, शीर्ष अदालत ने तलाकशुदा मुस्लिम महिला के भरण-पोषण के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन तत्कालीन सरकार इस फैसले को खत्म करने के लिए एक संशोधन ले आई, क्योंकि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ का उल्लंघन था।
याचिकाकर्तरओ ने दलील दी है कि सरकार ने गठबंधन दलों और राजनीतिक लाभ के लिए दबाव में आकर और अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा वोट बैंक खोने के डर से यह संशोधन किया।