नई दिल्ली, 7 सितंबर (आईएएनएस)। किसी महिला को डायन बताकर मारने और प्रताड़ित करने पर रोक लगाने के लिए एक अधिनियम लागू करने वाला असम पहला राज्य बन गया है। लेकिन इस कुरीति के खिलाफ अथक अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं असम पुलिस के अपर महानिदेशक कुलाधर सैकिया का मानना है कि इस सामाजिक कुरीति को दूर करने के लिए कानून के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी बेहद जरूरी है।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (आईएएनएस)। किसी महिला को डायन बताकर मारने और प्रताड़ित करने पर रोक लगाने के लिए एक अधिनियम लागू करने वाला असम पहला राज्य बन गया है। लेकिन इस कुरीति के खिलाफ अथक अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं असम पुलिस के अपर महानिदेशक कुलाधर सैकिया का मानना है कि इस सामाजिक कुरीति को दूर करने के लिए कानून के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी बेहद जरूरी है।
असम विधानसभा ने 13 अगस्त को असम विच हंटिंग बिल, 2015, (प्रोहिबिशन, प्रिवेंशन और प्रोटेक्शन) निर्विरोध पारित किया। यह राज्य के सोनितपुर जिले के एक गांव में जादू-टोने के आरोप में एक वृद्ध महिला को मार दिए जाने के तीन सप्ताह बाद यह विधेयक पारित किया गया है।
असम पुलिस के अपर महानिदेशक कुलाधर सैकिया ने आईएएनएस से कहा, “केवल कानून बनाना ही काफी नहीं है। इसके लिए सामाजिक भागीदारी भी जरूरी है।”
फुलब्राइट छात्रवृत्ति पर अमेरिका स्थित पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से नेतृत्व और प्रबंधन पाठयक्रम पूरा करके लौटने के बाद 2001 में सैकिया कोकराझार जिले (पश्चिमी परिसर) के उप महानिरीक्षक पद पर सेवारत हुए।
पूर्व मामलों के विश्लेषण के दौरान साइकिया की नजर में एक मामला आया जिसमें एक गांव के पांच लोगों को एक ही रात में मार दिया गया। जांच करने पर ज्ञात हुआ कि पांचों को जादू-टोने के आरोप में मारा गया था और उनकी मौत के आरोपी उनके अपने नातेदार और पड़ोसी थे।
इसी वर्ष सैकिया ने परियोजना प्रहरी आरंभ की। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चलाई जाने वाली योजना ने मीडिया और समाज का ध्यान आकषिर्त किया। राज्य के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा इसे राज्य स्तर की पुलिस योजना घोषित करने के बाद अब तक असम के 50 गांव इस परियोजना का हिस्सा बन चुके हैं।
डायन बताकर मार देने की घटनाओं के विश्लेषण के बाद इस कुरीति की जड़ में छिपे कई मुद्दे सामने आए। जटिल आपसी रिश्ते, संपत्ति हड़पने, आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कमी आदि कई समस्याओं के कारण गरीब, लाचार महिलाओं को डायन बता कर मार दिया जाता है। कई बार यह पूरे समाज के सामने किया जाता है।
सैकिया ने कहा, ” इस योजना का प्रभाव दो मोचरे पर नजर आ रहा है। पहला संचार के बुनियादी ढांचे, सड़कों, स्कूल की इमारतों, जैसी सामाजिक संपत्ति पर सामुदायिक स्वामित्व का भाव जगना। इसके कारण गांवों के भीतरी क्षेत्रों तक पहुंचना और शिक्षा का प्रसार करना मुमकिन हुआ। “
सैकिया ने कहा कि आतंकियों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई स्कूल की इमारतों को गांवों के लोग सुधार रहे हैं, अव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त किया जा रहा है और अंधविश्वासों को दूर किया जा रहा है।
दूसरा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा की जा रही है।
गांवों के नागरिकों को अप्रशिक्षित नीम-हकीमों की जगह आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, क्योंकि कई बार जादू-टोने की समस्या आधुनिक चिकित्सा का लाभ न लेने के कारण होती है।
प्रहरी योजना के अंतर्गत नियमित स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं। प्रशिक्षित विशेषज्ञों की सहायता से गांव के लोगों को स्वास्थ्य और साफ-सफाई से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं। साथ ही स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
लेकिन साथ ही, सैकिया जादू-टोने के कारण पारंपरिक चिकित्या पद्धति के लुप्त होने से चिंतित हैं।
सैकिया ने कहा, “जरूरी है कि गांवों के कुछ हकीमों की स्थानीय देशी दवाओं से संबंधित जानकारी को प्रलेखित किया जाए, क्योंकि यह जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से पहुंचती है।”
आज उच्च प्रबंधन संस्थान काूनन लागू करने वाली एजेंसियों को बतौर उत्प्ररेक लेते हुए, प्रहरी योजना को प्रबंधन में बदलाव के प्रतिमान के तौर पर ले रहे हैं।
सैकिया जो कि जाने-माने साहित्यकार भी हैं, ने कहा, “डायन बताकर मारने की कुरीति को दूर करने के लिए पुलिस के (न्यू असम) अधिनियम को दृढ़ता से लागू करने के साथ ही समाज के सभी वर्गो का मिला-जुला प्रयास भी बेहद जरूरी है।”