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 बुंदेलखंड : मनरेगा में मध्य प्रदेश का हाल उत्तर प्रदेश से बुरा | dharmpath.com

Thursday , 8 May 2025

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बुंदेलखंड : मनरेगा में मध्य प्रदेश का हाल उत्तर प्रदेश से बुरा

छतरपुर (मप्र), 27 मई (आईएएनएस)। सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के लिए मनरेगा किसी वरदान से कम नहीं है, मगर मध्य प्रदेश सरकार इस योजना का लाभ भी यहां के जरूरतमंदों को देने में नाकाम रही है। अप्रैल माह में अनुमान के विपरीत सिर्फ 29 प्रतिशत लोगों को ही मनरेगा के जरिए रोजगार मुहैया कराया गया है, वहीं बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से की स्थिति एकदम जुदा है। यहां अनुमान से ज्यादा, 132 प्रतिशत लोगों को मनरेगा से काम मिला है।

छतरपुर (मप्र), 27 मई (आईएएनएस)। सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के लिए मनरेगा किसी वरदान से कम नहीं है, मगर मध्य प्रदेश सरकार इस योजना का लाभ भी यहां के जरूरतमंदों को देने में नाकाम रही है। अप्रैल माह में अनुमान के विपरीत सिर्फ 29 प्रतिशत लोगों को ही मनरेगा के जरिए रोजगार मुहैया कराया गया है, वहीं बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से की स्थिति एकदम जुदा है। यहां अनुमान से ज्यादा, 132 प्रतिशत लोगों को मनरेगा से काम मिला है।

स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश के छह जिलों में अप्रैल माह में 18 लाख 81 हजार 296 मानव दिवस रोजगार की संभावना जताई गई थी, मगर रोजगार सिर्फ पांच लाख 47 हजार 136 मानव दिवस का ही मिल सका। इस तरह कुल संभावना का सिर्फ 29 प्रतिशत मानव दिवस का काम ही मिला। ये आंकड़े मनरेगा वेबसाइट से लिए गए हैं।

बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह जिलों छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दमोह व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट को मिलाकर बनता है। इस तरह बुंदेलखंड में 13 जिले आते हैं।

यादव ने आईएएनएस से कहा, “वे हमेशा यह मानते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुकाबले मध्य प्रदेश की सरकार न केवल बेहतर है, बल्कि काम भी अच्छा कर रही है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। मनरेगा के आंकड़े बहुत कुछ कह जाते हैं।”

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में संभावना के मुकाबले छतरपुर में 24 प्रतिशत, दमोह में 40 प्रतिशत, पन्ना में 16 प्रतिशत, सागर में 41 प्रतिशत और टीकमगढ़ में 20 प्रतिशत मानव दिवस काम उपलब्ध हो सका है। वहीं उत्तर प्रदेश में अनुमान से 132 प्रतिशत मानव दिवस सृजित किया गया।

यादव ने कहा कि मनरेगा के यह आंकड़े बहुत कुछ बयां कर जाते हैं। मनरेगा में एक दिन की मजदूरी 167 रुपये है। सूखा प्रभावित लोगों को अगर माह में सिर्फ 10 दिन ही काम मिल जाए तो उनका जीवन चल सकता है, लेकिन मध्य प्रदेश में तो यह भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

उन्होंने कहा कि एक तरफ पीने का पानी आसानी से नहीं मिल रहा, पशुओं के लिए चारा नहीं है, दूसरी तरफ रोजगार के इंतजाम नहीं हैं। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोगों को पलायन का रास्ता चुनना पड़ा है।

मनरेगा के तहत काम कराने के अनुमान के आधार पर केंद्र से बजट की मांग की जाती है। मध्य प्रदेश सरकार ने रोजगार देने के लिए जो अनुमान लगाया था उसके मुताबिक ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिला है। उत्तर प्रदेश ने 6,63,584 कार्य दिवस रोजगार की मांग थी। इसके मुकाबले 8,74,665 कार्य दिवस काम दिए गए। यह मांग की तुलना में 32 प्रतिशत अधिक है, यानी कुल मिलाकर 132 प्रतिशत कार्य हुए।

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