देवघर। झारखंड स्थित प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर द्वादश ज्योर्तिलिंग में से एक है।
मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव का भव्य 72 फीट ऊंचे मंदिर के अलावा प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है।
कुछ लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा जी ने करवाया है। पंडित कामेश्वर मिश्र के मुताबिक पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि रावण द्वारा शिवलिंग के रखे जाने और उसे चले जाने के बाद भगवान विष्णु स्वयं इस शिवलिंग के दर्शन के लिए पधारे थे। तब भगवान विष्णु ने शिव की षोडशपचार पूजा की थी तब शिव ने विष्णु से यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी। इसके बाद विष्णु के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने आकर इस मंदिर का निर्माण किया था।
उन्होंने बताया कि बाबा वैद्यनाथ को आत्मलिंग, मधेश्वर, कामनालिंग, रावणेश्वर, श्री वैद्यनाथ, मर्ग आदि नामों से भी जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि यहां वर्षभर शिवभक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन महीने में यह पूरा क्षेत्र केसरिया वस्त्र पहने शिवभक्तों से पट जाता है। भगवान भोलेनाथ के भक्त 105 किलोमीटर दूर बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा से जलभर कर पैदल यात्रा करते हुए यहां आते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं।
इस मंदिर में प्राचीनकाल से चली आ रही श्रृंगार पूजा का अपना अलग महत्व है। इस पूजा की सबसे बड़ी विशेषता है कि बाबा के श्रृंगार के लिए मुकुट जेल के कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है।
बाबा बैद्यनाथ के प्रतिदिन होने वाले संध्या श्रृंगार पूजा का विशिष्ट महत्व है। शिवलिंग को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। श्रृंगार करते समय मंदिर में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित कर दिया जता है। इस श्रृंगार पूजा में देवघर जेल के कैदियों द्वारा बनाए गए नाग पुष्प मुकुट से बाबा को सजाया जाता है।
जनश्रुतियों के मुताबिक अंग्रेजों के समय में जेल के एक जेलर का पुत्र दक्षिण अफ्रीका गया था और वह लापता हो गया था। उसे खोजने के काफी प्रयास किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। जेलर ने तब स्थानीय लोगों के कहे अनुसार बाबा के मंदिर में जाकर पूजा-पाठ की और पुष्प से श्रृंगार किया। इसके बाद चमत्कार हो गया और उसका खोया पुत्र वापस चला आया। इसके बाद यहां से प्रतिदिन मंदिर में पुष्प जाने लगा।
जेल में इसके लिए एक बाबा वार्ड है, जहां कैदी पूरी शुद्धता से मुकुट का निर्माण करते हैं। जेल के सिपाही शहर के बागों से प्रतिदिन फूल लाकर इन कैदियों को देते हैं। सात वर्ष से मुकुट बना रहे कैदी अशोक का कहना है कि चार बजे तक मुकुट बना लिया जाता है, फिर इसे कंधे पर रखकर मंदिर तक पहुंचाया जाता है।