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कर्नाटक हाईकोर्ट की टिपण्णी : अपनी पसंद से विवाह करना हर वयस्क का मौलिक अधिकार

December 3, 2020 11:08 am by: Category: भारत Comments Off on कर्नाटक हाईकोर्ट की टिपण्णी : अपनी पसंद से विवाह करना हर वयस्क का मौलिक अधिकार A+ / A-

नई दिल्ली-उत्तर प्रदेश के लव जिहाद अध्यादेश पर बहस के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट का कहना है कि किसी भी वयस्क द्वारा अपनी पसंद से विवाह करना भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के तहत आता है.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाल ही में तथाकथित लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ अध्यादेश को मंजूरी दी है.

इस अध्यादेश के तहत शादी के लिए छल-कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराए जाने पर अधिकतम 10 साल के कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है. इसे खुले तौर पर मुस्लिम विरोधी विधेयक के तौर पर माना जा रहा है.

लव जिहाद हिंदूवादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली शब्दावली है, जिसमें कथित तौर पर हिंदू महिलाओं को जबरदस्ती या बहला-फुसलाकर उनका धर्म परिवर्तन कराकर मुस्लिम व्यक्ति से उसका विवाह कराया जाता है.

कई भाजपा शासित राज्यों ने भी इसी तरह के कानून का वादा किया है, जिसमें से एक कर्नाटक भी है.

दरअसल एक दिसंबर को एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस एस. सुजाता और जस्टिस सचिन शंकर मगादम की पीठ ने कहा, ‘दो व्यक्तिों के निजी संबंधों की स्वतंत्रता का उनकी जाति या धर्म की वजह से किसी के द्वारा भी हनन नहीं किया जा सकता.’

वजीद खान नाम के एक मुस्लिम युवक ने अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी पार्टनर राम्या की रिहाई की मांग की थी.

पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर राम्या ने अदालत को बताया कि अपने पार्टनर से शादी करने का इरादा उनका खुद का है, जिसका उनके (राम्या) परिजन विरोध कर रहे हैं.

राम्या ने कहा कि वह बेंगलुरु के पास विद्यारण्यपुरा में महिला दक्षता समिति में रह रही थीं. अदालत ने समिति से राम्या को रिहा करने का निर्देश दिया.

हालांकि, यह रिपोर्ट से स्पष्ट नहीं है कि क्या वह अपने परिजनों से बचकर वहां रह रही थीं और उनकी त्वरित रिहाई को लेकर अदालत ने हस्तक्षेप किया.

इस दौरान अदालत ने कहा, ‘किसी भी शख्स द्वारा अपनी पसंद से विवाह करना भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार है.’

कर्नाटक हाईकोर्ट का यह बयान इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 नवंबर के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्ववर्ती एकल जज की पीठ के उस फैसले की निंदा की थी, जिसमें कहा गया था कि केवल विवाह के लिए धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है.

बीते 11 नवंबर के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आना सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कर्नाटक सरकार लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 के तहत अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह को लेकर कार्रवाई कर रही है.

रिपोर्ट में कहा गया कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में पिछले पांच साल में आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज 41 केस लंबित पड़े हैं. इनमें वयस्कों को भगाने और शादी करने के मामले शामिल हैं. 35 मामले हिंदू युगलों से जुड़े हैं, जबकि छह मामले अंतरधार्मिक हैं.

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