अमरीका मोदी को प्राथमिकता नहीं दे रहा है, यह बात तो सभी लोग लम्बे समय से जानते हैं। हालाँकि पिछले दिनों में भारत में प्रधानमन्त्री पद के इस उम्मीदवार की तरफ़ अमरीका ने भी कुछ शुरूआती क़दम उठाए हैं, लेकिन अमरीका में घुसने पर उन पर लगी रोक हटाने का सवाल अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। सवाल यह भी है कि ख़ुद नरेन्द्र मोदी अमरीकी विदेश मन्त्रालय द्वारा किए जा रहे इस दुर्व्यवहार पर अपनी नाराज़गी को कितनी जल्दी भुला देंगे?
पश्चिमी यूरोप के ब्रिटेन जैसे कुछ देशों ने समय पर भारत में होने वाले परिवर्तनों को पहचान लिया था और चुनाव जीतने से बहुत पहले ही नरेन्द्र मोदी से अपने रिश्ते बेहतर बनाने की पहल की थी। ऐसा लग रहा था कि इस रिश्ते को अधिक सफ़लतापूर्वक विकसित करने की ज़रूरत है और अमरीका से सम्बन्ध बनाने की जगह यूरोप के साथ रिश्तों को बेहतर बनाया जा सकता है। वैसे भी अमरीका के साथ निकटता बढ़ाने की वज़ह से ही भारत की वर्तमान सरकार को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। न सिर्फ़ उसकी छवि ख़राब हुई है बल्कि तेल और ईंधन की क़ीमतें भी बहुत ज़्यादा बढ़ गई हैं, जिनकी वज़ह से भारत की पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा उठी है।
लेकिन नरेन्द्र मोदी ने यूरोप के साथ भी तनाव बढ़ाने में कोई कोर-कसर उठा न रखी है। बीते सोमवार को राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के उपनेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार इटली के दबाव के आगे पूरी तरह से झुक गई, जब उसने भारतीय मछुआरों की हत्या के अपराध में गिरफ़्तार इतालवी नौसैनिकों पर समुद्री डकैतों के ख़िलाफ़ लगाई जाने वाली धारा न इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया।
यहाँ एक बड़ा सवाल यह भी है कि नरेन्द्र मोदी की यह जंगजू छवि किस हद तक सिर्फ़ चुनाव अभियान की वज़ह से बनाई जा रही है। शायद मतदाताओं के वोट पाने के लिए ही मोदी की यह छवि बनाई गई है। प्रधानमन्त्री बनने के बाद मोदी का यह सारा जोश ठण्डा पड़ जाएगा। लेकिन यहाँ एक दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। अरब देशों का और उक्राइना का अनुभव यह दिखाता है कि अतिवादी ताक़तों की चोंचलेबाज़ी करने का फल कभी मीठा नहीं होता। चुनावी युद्ध के समय प्रमुख राजनीतिज्ञों का समर्थन पाकर अतिवादी तत्त्व चुनाव में विजय होने के बाद अपनी माँगे पूरी करने की माँग करना शुरू कर देंगे।
कहीं ऐसा न हो कि विदेश नीति के क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी के ये तीखे कथन ख़ुद उनके ही पैर पर कुल्हाड़ी मार दें और वे सम्भावित देश उनका साथ देने से मना न कर दें जो फिलहाल उनका समर्थन कर रहे हैं।