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 ओशो रजनीश | dharmpath.com

Friday , 16 May 2025

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ओशो रजनीश

oshopओशो एक आध्यात्मिक नेता थे, उन्होंने दुनिया भर में घूम-घूम कर प्रवचन दिये और धर्म की अलग परिभाषा दी। रजनीश ने प्रचलित धमरें की व्याख्या की और प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना। वह अपने विवादास्पद धार्मिक आन्दोलन के लिये मशहूर हुए ।

आचार्य रजनीश का वास्तविक नाम रजनीश चन्द्र मोहन था। जो विश्व भर में ओशो के नाम से प्रसिद्ध हुये। ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा-जबलपुर शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्र जैन और माता जी का नाम लक्ष्मी था।

गांव में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई का प्रबंध जबलपुर मे हुआ। 1951 में जब 20 साल के ओशो ने धर्मसमाज में बोलना शुरू किया तभी लोगों को उनके कौशल का अंदाज़ा हो गया था। 1957 में उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम. ए. किया और रायपुर के एक संस्कृत कॉलेज में पढ़ाने लगे। अगले साल वे जबलपुर विश्वविद्यालय में व्याख्याता हो गए। उसके बाद तीन साल में ही वे आचार्य रजनीश हो गये। 1962 में जीवन जागृति केन्द्र के नाम से संस्था बनाई। 1966 में उन्होंने प्राध्यापकी छोड़कर अपनी संस्था पर ध्यान केन्द्रित किया और 1970 में मुंबई आ गये। महेश भट्ट, विनोद खन्ना, विजय आनंद जैसी फिल्मी हस्तियां उनके सम्पर्क में आये और यहां वो भगवान कहे जाने लगे। उनके शिष्यों ने पुणे में सात एकड़ जमीन खरीद कर वहां आश्रम विकसित किया। 1974 में ओशो यहां आ गए।

ओशो के अमेरिकी शिष्यों ने 1990 में अमेरिका के ओरेगन राज्य में रजनीशपुरम् के नाम से शहर बसाने के लिए 64 हजार एकड़ खरीदी। जून,1981 में ओशो यहां पहुंच गये और 5 हजार भक्तों ने इस रेगिस्तान को हरा-भरा कम्यून बना दिया।

उनके बढ़ते प्रभाव से कट्टरपंथी ईसाई धर्मगुरू और नेता घबरा गये। सरकार पर दबाब बनाया और उन पर अप्रवास नियमों का उल्लघंन के अलावा 35 आरोप लगाये गये। एक आरोप यह भी था कि गाड़ियों के इतने बड़े बेड़े में इतनी सारी रोल्स रायस कारें कहां से आयीं? 12 दिन तक बन्द रहने के बाद जुलाई, 1986 में पुणे वापस आ गये। दिसम्बर 1988 में उन्होंने अनुरोध किया उन्हें केवल ओशो के नाम से पुकारें ना कि भगवान रजनीश के नाम से। 19 जनवरी,1990 को लम्बी बीमारी और चुप्पी के बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया। कहा जाता है कि गिरफ्तारी के समय अमेरिका सरकार ने उन्हें थेलियम नामक धीमा जहर दिया गया था।

ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होंने 45 देशों में लगभग 5 करोड़ अनुयायी और शिष्य बनाये। आज 350 ध्यान केन्द्र ओशो के विचारों को विश्व भर में फैला रहे हैं। भारत के बुद्धिजीवी और शिक्षित वर्ग के अलावा विदेशों में लोग ओशो के दिवाने हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आदि देशों के अलावा जापान, इंडोनेशिया, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों में भी ओशो के अनुयायियों की बहुत बड़ी संख्या है।

अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब 600 पुस्तकें हैं। संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है। उनकी महात्मा गांधी पर की गयी टिप्पणियों ने देश भर में हलचल मचा दी थी।

ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सम्यक सन्यास को पुनर्जिवित किया है। ओशो ने पुन: उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। सन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। इसलिए यह नव-संन्यास है। उनकी नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्‍‌नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए।

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