अनिल सिंह भोपाल से – मप्र में वेब पत्रकारिता अपनी शैशव अवस्था में है .आज के युग में वेब पत्रकारिता का राष्ट्र ,समाज निर्माण में महती उपयोग सामने आया है .जिस तरह बड़े अखबार या दृश्य समूहों के उपस्थिति के बाद भी छोटे आर्थिक समूहों के या स्वतन्त्र अखबार और पत्रिकाओं का दखल राष्ट्र के लिए उपयोगी साबित हुआ है उसी तरह आज के डिजिटल युग में वेब पत्रकारिता का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.
मप्र में शासन की वेब पोर्टलों एवं शासकीय सेवाओं को डिजिटल करने की घोषणाओं के बाद भी कार्य नहीं हो रहा.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई दफे इस बाबत घोषणा कर चुके हैं लेकिन इस दिशा में अधिकारीयों की रुचि प्रदर्शित नहीं हो रही है .
मामला तब और गंभीर हो जाता है जब शासन के तरफ से विज्ञापन के रूप में दी जाने वाली राशि महीनों नहीं मिलती.लोकतंत्र में पत्रकारिता को सुविधाएं इसे मजबूत और पारदर्शी बनाए रखने के लिए हैं ताकि लोकतंत्र का ढांचा आने स्वरूप को बनाए रखे लेकिन मप्र में इस दिशा की तरफ कोई गंभीरता से नहीं देख रहा यह लोकतंत्र के ढाँचे को बेडौल करने की कवायद प्रदर्शित करता है .
वेब पत्रकारिता की वजह से ख़बरें नहीं छुप पातीं
अभी हाल में ऐसी कई कारस्तानियाँ हुईं हैं जो बड़े समूहों की वजह से नहीं बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन कलम के पैने वेब पोर्टलों ने उजागर किये .जब ये ख़बरें सामने आयीं तब उन्हें बड़े समूहों ने अपनी बेइज्जती के तौर पर लिया एवं उच्च स्तर तक इसे फैलाया.पहले ही संसाधनों की कमी एवं आर्थिक कमजोरी से जूझते इस संस्थानों को की आर्थिक कमर तोड़ने की तैयारी की गयी.
मप्र शासन की वेब पत्रकारिता को हतोत्साहित करने की कवायद के प्रति चुप्पी इस पत्रकारिता के लिए खतरनाक संकेत है .
वेब पत्रकारिता संस्थानों से शासन के अलावा राजनैतिक दल भी दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं
शासन की दृष्टि में परेशानी महसूस होती इस विधा पर लगाम लगाने की तैयारी है.पहले विधानसभा में विधायक बाला-बच्चन के द्वारा इस पर हमला और अब नव-नियुक्त जनसंपर्क मंत्री द्वारा इसकी खोज-खबर लेना इस संसाधन को परेशान कर रखा है लेकिन पत्रकारिता क्षात्र-धर्म है और संघर्ष उसकी नियति .किसी भी शासनकाल में सत्ता पक्ष कलम की ताकत का ही सम्मान करता है ना की चाटुकारिता का .
मप्र के दो प्रमुख् राजनैतिक दल भाजपा एवं कांग्रेस में दोनों दलों की वेब-पत्रकारिता के प्रति सम्मान की दृष्टि नहीं हैं .इन दोनों दलों की तरफ से प्रेस कवरेज मेन वेब पत्रकारिता को बिलकुल महत्त्व नहीं दिया जाता .शासन की तरफ से भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है .शासकीय कार्यक्रमों में प्रवेश-पत्र पाने के संघर्ष से होते पत्रकारों को अक्सर देखा जाता है वहीँ राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता आसानी से प्रवेश -पत्र हासिल कर लेते है.मंत्रालय,विधानसभा में प्रवेश पत्र जारी करवाना किसी जद्दोजहद से कम नहीं है .
लेकिन, संघर्ष के कठिन दौर से गुजरती वेब-पत्रकारिता का अच्छा समय भी आएगा इस उम्मीद में मप्र में वेब पत्रकार खामोशी से अपना कार्य कर रहे हैं .वो सुबह कभी तो आएगी …………….