कोलकाता, 28 जनवरी (आईएएनएस)। ब्रिटिश लेखिका एवं दुनिया की एकमात्र प्राकृतिक नीले रंग की डाई नील (इंडिगो) और कई अन्य टेक्सटाइल्स के बारे में दुनिया भर में व्याख्यान देने वाली जेनी बलफॉर पॉल का कहना है कि भारतीय फैशन और टेक्सटाइल उद्योग जलवायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण है, क्योंकि इसमें कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।
ब्रिटेन की ‘एक्जेटेर यूनिवर्सिटी’ में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ अरब एंड इस्लामिक स्टडीज’ में मानद रिसर्च फैलो बलफॉर पॉल ने यहां आईएएनएस को बताया, “फैशन और टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण का खास ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि ये प्रदूषण के खास कारक हैं।”
इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने फैशन पर एक अलग दृष्टिकोण रखते हुए प्राकृतिक टेक्सटाइल्स का प्रयोग करने की सलाह दी है और साथ ही कहा कि निरंतर बदलते फैशन में प्राकृतिक टेक्सटाइल्स को शीघ्र ही फेंक देने की जगह उनका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए।
बलफॉर पॉल ने प्राकृतिक नील को सर्वोत्तम हरित फसल बताते हुए कहा, “डेनिम को अब बिल्कुल प्राकृतिक तरीके से बनाया जा सकता है। फैशन हर पल बदलता रहता है, लेकिन बदलते फैशन के साथ हमें कपड़ों को फेंक देने की जगह उनका पूरा इस्तेमाल करना चाहिए।”
पॉल ने नील के बारे में दो दशकों से भी अधिक शोध किया है।
पॉल की किताब ‘डीपर देन इंडिगो : ट्रेसिंग थॉमस मैशेल’ पहले अफीम युद्ध समेत कई ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह रहे विक्टोरियन अन्वेषक और नील की खेती करने वाले थॉमस मैशेल के जीवन पर आधारित है।
19वीं सदी में नील की खेती करने वाले मैशेल ने वयस्क होने के बाद अपना अधिकांश जीवन भारत में ही व्यतीत किया था और उन्होंने भारत, बांग्लादेश, चीन, उत्तरी अमेरिका और अरब देशों की कई यात्राएं की थीं।
हाल ही में समाप्त हुए ‘टाटा स्टील कोलकाता साहित्य समारोह’ के मौके पर आईएएनएस से बात करते हुए बलफॉर पॉल ने इस बात पर जोर दिया कि विभिन्न धर्मो और उनकी आपसी संबंद्धता को लेकर मैशेल का दृष्टिकोण आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है।
पॉल ने कहा, “मैशेल का कहना है कि हम सभी को एक-दूसरे के धर्मो के प्रति सहिष्णु होना चाहिए और उनका ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, अन्यथा भविष्य में काफी समस्याएं हो सकती हैं। उनका मानना है कि शिक्षा हर समस्या को दूर करने की कुंजी है और इसलिए उन्होंने अपने बागानों में एक स्कूल की भी स्थापना की।”