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उत्तराखंड का घुघतिया पर्व बेहद खास

January 15, 2016 8:15 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म, भारत Comments Off on उत्तराखंड का घुघतिया पर्व बेहद खास A+ / A-

download (1)लखनऊ, 15 जनवरी (आईएएनएस/आईपीएन)। मकर संक्रांति के त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। उत्तर भारत में ये ‘खिचड़ी पर्व’ के रूप में प्रसिद्ध है, तो पंजाब इस मौके पर लोहड़ी मनाता है। वहीं दक्षिण भारत, खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पोंगल मनाता है। मगर उत्तराखंड इसी दिन घुघतिया त्योहार बेहद खास अंदाज में मनाता है। घुघतिया त्योहार की पहचान पकवानों से है।

लखनऊ, 15 जनवरी (आईएएनएस/आईपीएन)। मकर संक्रांति के त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। उत्तर भारत में ये ‘खिचड़ी पर्व’ के रूप में प्रसिद्ध है, तो पंजाब इस मौके पर लोहड़ी मनाता है। वहीं दक्षिण भारत, खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पोंगल मनाता है। मगर उत्तराखंड इसी दिन घुघतिया त्योहार बेहद खास अंदाज में मनाता है। घुघतिया त्योहार की पहचान पकवानों से है।

धार्मिक नगरियों की बात करें तो इलाहाबाद और हरिद्वार में तो ये दिन गंगा स्नान के नाम रहता है। शुक्रवार को इस बार भी दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने मकर संक्रांति पर गंगा में डुबकी लगाई। अर्धकुंभ होने के कारण हरिद्वार में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।

इन सबके बीच मकर संक्रांति के पर्व को जिसे न सिर्फ पूरा उत्तराखंड, बल्कि देवभूमि से जुड़ा हर परिवार बेहद उत्साह से मनाता है, भले ही वह देश के किसी भी हिस्से मंे रहता हो। उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड कभी एक राज्य होने के कारण लखनऊ सहित अन्य जनपदों में रहने वाले उत्तराखंड के मूल निवासियों ने भी शुक्रवार को यह पर्व पूर हर्षोल्लास से मनाया।

दरअसल, उत्तराखंड में मकर संक्रांति घुघतिया के नाम से मनाई जाती है, जिसे लोग ‘घुघती त्यार’ या ‘उत्तरैणी’ भी कहते हैं। घुघतिया मुख्य रूप से बच्चों का त्योहार है। इस दिन कौवों की बड़ी पूछ होती है। उन्हें बुला-बुला कर पकवान खिलाए जाते हैं। कुमाऊं में इस संदर्भ में एक कहावत भी कही जाती है, ‘न्यूती वामण और घुघतिक कौ’ यानी श्राद्धों या नवरात्रों में ब्राह्मण का मिलना और घुघती त्योहार के दिन कौवे का मिलना बड़ा मुश्किल है।

सूर्य इस दिन से उत्तरायण हो जाता है, इसीलिए इसे उत्तरैणी भी कहते हैं। इस दिन से ठंड घटनी शुरू हो जाती है, प्रवासी पक्षी जो कि ठंड के कारण गरम क्षेत्रों की और प्रवास कर गए थे, पहाड़ों की ओर लौटना शुरू करते हैं। इन्ही पंछियों के स्वागत का त्योहार है घुघतिया, जिसका नाम भी एक पहाड़ी चिड़िया के नाम पर है, जिसे कुमांऊनी में घुघुती कहते हैं।

घुघतिया त्योहार के दिन आग के चारों ओर पूरा परिवार बैठता है, और गुड़ और दूध में गुंथे हुए गेहूं के आटे से अनेक तरह की छोटी-छोटी आकृतियां बनाई जाती हैं, जैसे तलवार, डमरू, ढाल, दाड़िम, शक्करपारा (कुमांऊनी में खजूर)। इसे बाद धीमी आंच में तलकर इन आकृतियों को नारंगी यानी संतरे के साथ गूंथ कर मालाएं बनाई जाती हैं।

अगले दिन सुबह पकवानों की माला गले में लटकाए बच्चे ‘काले कौवा काले, घुघती माला खा ले’ कहकर कौवों को बुलाते हैं और पकवान खिलाते हैं।

शुक्रवार को उत्तराखंड से जुड़े परिवार इन पकवानों को बनाने में जुटे रहे। वहीं बच्चे शनिवार का इंतजार करते दिखे, जब वह कौवों को इन्हें खाने के लिए आमंत्रित करेंगे और खुद भी घुघतियों की माला पहनेंगे और फिर इसके पकवान को माला से तोड़-तोड़कर चाव से खाएंगे। इस तरह यह पर्व पक्षियों के संरक्षण के तौर पर बेहद मायने रखता है।

इस पर्व के पीछे ऐसा वातारण बनाए रखने की शिक्षा है, जिसमें प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए पक्षियों की भी भरपूर मौजूदगी हो।

खास बात है कि आस पड़ोस में पकवानों की अदला बदली होती है। जो बच्चे किसी कारणवश दूर में होते हैं, उनकी मां, दादी, नानी उनके लिए माला बनाकर सहेज के रखती हैं, ताकि उनके घर आने पर उन्हें पहना के खिला सकें या किसी के जरिए उन तक पहुंचा सकें।

लोगों की जीवनशैली भले ही कितनी आधुनिक हो गई हो, लेकिन आज भी बड़े-बुजुर्ग इस परंपरा को निभा रहे हैं। इसके बाद यह त्योहार माघ की खिचड़ी खाने के साथ खत्म होता है।

उत्तराखंड का घुघतिया पर्व बेहद खास Reviewed by on . लखनऊ, 15 जनवरी (आईएएनएस/आईपीएन)। मकर संक्रांति के त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। उत्तर भारत में ये 'खिचड़ी पर्व' के रूप में लखनऊ, 15 जनवरी (आईएएनएस/आईपीएन)। मकर संक्रांति के त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। उत्तर भारत में ये 'खिचड़ी पर्व' के रूप में Rating: 0
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