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Thursday , 5 June 2025

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..और सुरक्षा तंत्र सोता रहा

चिंता यह नहीं कि पंजाब में पाक की नापाक हरकतों ने पूरे देश को झकझोरा, बल्कि यह भी कि खुफिया एजेंसियां कैसे इन सबसे अनजान रहीं, नाकाम रहीं? 15 किलोमीटर का पैदल सफर कर असलहों से लैस तीन आतंकवादी बड़े आराम से रात 11 बजे ही न केवल भारत की सीमा में घुस जाते हैं, बल्कि पूरी रात चलकर जीपीएस के जरिए दीनापुर में अपने ठिकाने भी पहुंच जाते हैं।

चिंता यह नहीं कि पंजाब में पाक की नापाक हरकतों ने पूरे देश को झकझोरा, बल्कि यह भी कि खुफिया एजेंसियां कैसे इन सबसे अनजान रहीं, नाकाम रहीं? 15 किलोमीटर का पैदल सफर कर असलहों से लैस तीन आतंकवादी बड़े आराम से रात 11 बजे ही न केवल भारत की सीमा में घुस जाते हैं, बल्कि पूरी रात चलकर जीपीएस के जरिए दीनापुर में अपने ठिकाने भी पहुंच जाते हैं।

पौ फटने से पहले तलवंडी रेलवे पुल पर वे 5 आरडीएक्स से लैस शक्तिशाली बम फिट करते हैं, हमारी खुश्किस्मती बस इतनी कि बैटरी गीली हो गई और एक बड़ा हादसा टल गया। आतंकी इतने बेखौफ कि बस रोकते हैं, नहीं रुकने पर फायरिंग करते हैं, ड्राइवर की होशियारी से मुसाफिरों की जान बचती है। बाद में एक कार छीनते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।

जाहिर है, इसमें वक्त तो लगा होगा, फिर भी हमारा नाकारा सुरक्षा तंत्र सोता रहा। आखिर वे अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं और दीनानगर थाने में घुसकर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू देते हैं। तब कहीं हमारी अलसायी सुरक्षा व्यवस्था भोर की गहरी नींद से जागती है। आतंकियों की अत्याधुनिक एके-47, रॉकेट लांचर, ग्रेनेड्स के जवाब में पंजाब पुलिस के जवान पुरानी बंदूकों के साथ बिना बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट के सेल्फ लोडेड रायफल्स से जवाबी कार्रवाई में खुद को झोंक देते हैं।

आतंकियों से लड़ती पंजाब पुलिस की तस्वीरों से तरस आता है। साफ लग रहा था कि पंजाब पुलिस को न तो आतंकियों से निपटने कोई खास ट्रेनिंग दी गई है और न ही आतंकी समझ की पूरी जानकारी, फिर भी पंजाब पुलिस ने कमाल का काम किया। अगर यही सब तैयारी के साथ होता तो संभव था कि खून खराबा कम होता और मोर्चे पर सफलता जल्दी मिलती।

अमेरिका में स्पेशल विपंस एंड टैक्टिस यानी ‘स्वाट’ है जिसका गठन 1968 में लॉस एंजेलिस पुलिस विभाग में किया गया। इसका काम आतंकवादी विरोधी अभियान, बंधक मुक्ति, वारंटियों की खोज, संदिग्धों के खिलाफ मोचार्बंदी, भारी हथियारों से लैस अपराधियों को पकड़ना होता है।

टीम के पास विशेष हथियार होते हैं जिनमें राइफल, टॉमी बंदूक, शॉटगन, कार्बाइन, बेहोश करने वाले हथगोले, घात लगाकर निशाना साधने वाली उच्च क्षमता की बंदूकें, विशेष उपकरण जिसमें भारी कवच, कवचधारी वाहन, रात में देख पाने योग्य कैमरे, छिपे हुए आतंकियों या बंधकों की स्थिति को समझने वाले डिटेक्टर्स होते हैं। एक और देश इजरायल जिसकी पूरी व्यवस्था सुपर हाईटेक है।

कैमरे, कम्प्यूटर और सॉफ्टवेयर चौबीसों घंटे निगरानी करते हैं। क्या मजाल जो परिंदा भी पर मार जाए। धुआं की हल्की सी गुबार तक कैमरे की जद में। यहां हर समय आतंकी हमले से निपटने को तैयार एक सेफ सिटी कांसेप्ट काम करता है जिसका मकसद लोगों को भयमुक्त रखना है।

तेल अवीब शहर आतंवादी हमलों दर हमलों के बाद भी छावनी में नहीं बदला, कैसे? पुलिस शहर में दिखती तक नहीं, न बैरीकेड, न पूछताछ, न छानबीन फिर भी अमन-चैन! सारा कमाल है कमांड और कंट्रोल सेंटर का, जो म्युनिस्पल के एक कमरे में चलता है। तरीका बहुत आसान। हर गली, मुहल्ला कैमरे की निगाहों में है, वह भी इतने ताकतवर कि गाड़ियों के नंबर प्लेट तक पढ़ लें। इसे वॉच करने तैनात है मुस्तैद टीम।

हजारों कैमरे पर नजर का तरीका भी वैज्ञानिक जिसमें वीडियो कंटेंट एनालिसिस सिस्टम, जिसके जरिए वो तस्वीरें खुद-ब-खुद स्क्रीन पर डिस्प्ले होने लगती हैं, जिन्हें पहचानने की कमांड उन्नत कंप्यूटरों को दी गई है। तेज रफ्तार गाड़ी, गलत तरीके से चलता, भिड़ता या भागता ऑब्जेक्ट, सड़क पार करने में हुई हड़बड़ी या गड़बड़ी, यहां तक कि अगर कहीं आग लग जाए या दुर्घटना हो जाए तो सीधी तस्वीरें खुद कंट्रोल सेंटर में अपने आप डिस्प्ले होने लग जाती हैं।

सेना, पुलिस और प्रशासन हर वक्त आपस में जुड़े होते हैं, तुरंत फैसला लेकर कार्रवाई करते हैं। आतंकवादी हमले वहां भी शहर, कस्बे और गांवों में होते हैं। लेकिन व्यवस्था हर कहीं इतनी चुस्त-दुरुस्त कि धुएं का छोटा सा गुबार भी कैमरा पकड़ ले। इजरायल की सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर यहां के गोल्डन सीरिज के यूएवी और कैमरे दुनिया के चुनिंदा देशों में उपयोग किए जाते हैं। इनसे 360 डिग्री तक आसपास के इलाकों को दिन में बखूबी सर्चिग की जा सकती है।

यह तो चंद मॉडल हैं आतंकवाद से निपटने खातिर। भारत को भी कुछ ऐसी व्यवस्थाओं को अंजाम देना होगा। दीनानगर आतंकी हमले से निपटने 12 घंटे चले ऑपरेशन में एक पुलिस अधीक्षक, 4 पुलिस जवान, 3 बेगुनाह नागरिकों की कुबार्नी पर यकीनन सबको नाज है। लेकिन सवाल फिर वही जिस देश में ही प्रतिभाओं की भरमार है, तकनीकी महारत में दुनिया में नामचीनों की लंबी फेहरिस्त है, तब भी हमारे बार्डर और संवेदनशील इलाके असुरक्षित!

अब जरूरत इस बात की कि सुरक्षा के लिए असलाह, बारूद तो हों, लेकिन वे आधुनिक तकनीक और तरकीब भी हों, जिनसे पलक झपकते किसी भी नापाक इरादे की सूचना खुद-ब-खुद मिले और दुश्मनों के मंसूबे नाकाम हो जाएं। (आईएएनएस)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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