करील की खपत गांवों के साथ-साथ अपने शहरों पर बड़े पैमाने पर हो रही है। इसके चलते इसका बड़े पैमाने पर दोहन कर व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है। कोपलें तोड़ लिए जाने से बांस को नुकसान पहुंचता है।
जगदलपुर के मुख्य वन संरक्षक तपेश कुमार झा ने लोगों से अपील की है कि बांस वनों का संवर्धन एवं संरक्षण करना अति आवश्यक है, इसलिए इसकी कोपलें न तोड़ें।
उन्होंने बताया कि करील (बांस की कोंपल) पूर्व में करील स्थानीय जनजातीय निवासियों के लिए सामयिक खाद्य पदार्थ के रूप में उपलब्ध था, जिसे स्थानीय जनजातीय समूह इसका दोहन इस प्रकार करते थे कि बांस वनों को नुकसान न पहुंचे।
झा के मुताबिक, शहरों में करील की बढ़ती मांग ने इसके दोहन का व्यवसायीकरण कर दिया है, जिससे बांस वन को नुकसान पहुंचाने की सीमा तक व्यवसायिक दोहन होने लगा है। इस कारण बांस वन विलुप्त होने लगे हैं और बांस आधारित उत्पादों से जीवनयापन करने वाले वनवासियों के लिए रोजगार के अवसर भी छिन रहे हैं।
मुख्य वन संरक्षक ने यह भी बताया कि वन विभाग के कर्मचारी बांस की कोपलें तोड़ने के धंधे की रोकथाम के लिए कानूनी कार्रवाई भी करते हैं तथा इस धंधे में इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों को भी जब्त करते हैं।
उन्होंने बताया कि स्थानीय वन समितियों से भी आग्रह किया गया है कि वे करील का अपने क्षेत्र से बाहर निकासी न होने दें और मात्र अपने स्वयं के उपयोग के लिए परंपरागत रूप से, बिना बांस भिरों को नुकसान पहुंचाए करील का कम से कम उपयोग करें।
झा ने कहा कि जगदलपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और बस्तर के अन्य प्रमुख वन केंद्रों पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना अति आवश्यक है। बाजारों में करील के व्यापार को रोकने में सभी का सहयोग अपेक्षित है। इसके अलावा बांस वनों के रोपण कार्य में जनसहयोग भी चाहिए।
उन्होंने शासकीय अधिकारियों और शिक्षकों को मुहिम चलाकर करील के व्यापार को रोकने एवं बांस वनों की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से रोकने में सहयोग देने का आग्रह भी किया है।