Wednesday , 15 May 2024

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कश्मीर : सिकुड़ रही दलदली भूमि, मंडरा रहा आपदा का खतरा (आईएएनएस विशेष)

होकरसर (श्रीनगर), 8 मई (आईएएनएस)। कश्मीर में चारों और फैली दलदली भूमि ने घाटी को जानलेवा बाढ़ से बचाने में वर्षो से पहली सुरक्षा पंक्ति का काम किया है। लेकिन दलदली जमीन अब तेजी से सिकुड़ रही है, जिससे लोगों में यह डर बढ़ने लगा है कि कहीं उन्हें 2014 जैसी आपदा का सामना फिर न करना पड़े।

होकरसर (श्रीनगर), 8 मई (आईएएनएस)। कश्मीर में चारों और फैली दलदली भूमि ने घाटी को जानलेवा बाढ़ से बचाने में वर्षो से पहली सुरक्षा पंक्ति का काम किया है। लेकिन दलदली जमीन अब तेजी से सिकुड़ रही है, जिससे लोगों में यह डर बढ़ने लगा है कि कहीं उन्हें 2014 जैसी आपदा का सामना फिर न करना पड़े।

दलदली भूमि में सिकुड़न ने लाखों मध्य एशियाई, चीनी और यूरोपीय पक्षियों के शीतकालीन घरों और बसेरों को भी छीन लिया है। इससे घाटी के बदलते पारिस्थितिकी तंत्र के अस्त्वि के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।

विशेषज्ञों ने इस संवाददाता से कहा कि इन दलदली भूमि के आर्थिक महत्व को हमेशा से कमतर आंका जाता रहा है।

दो दशकों से कश्मीर के पर्यावरण पर काम कर रहे एक मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता फारूक शाह ने कहा, “पूरी दुनिया में लोगों के लिए दलदली भूमि का महत्व है। कश्मीर अपवाद नहीं है। हम अक्सर इसके महत्व को स्वीकार करने में विफल हो जाते हैं।”

शाह ने कहा, “आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ के अलावा ये दलदली भूमि भयानक जलवायु परिवर्तन से हुई क्षति को पूरा करने में भी सहायता करती है।”

आधिकारिक ब्योरे के मुताबिक, दलदली भूमि में सिकुड़न से बड़े पैमाने पर धान की खेती, बागान और आवासीय परिसरों का निर्माण का प्रभावित हुआ है।

आधिकारिक ब्योरे बताते हैं कि कानूनी तौर पर संरक्षित होने के बावजूद कश्मीर के नौ दलदली जमीन विगत 50 वर्षो में बड़े पैमाने पर सिकुड़ गई हैं। शाह इसके लिए मानवीय लालच और सरकारी उपेक्षा को मुख्य वजह मानते हैं।

घाटी में दलदली जमीन के सिकुड़ने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि घाटी के उत्तर में श्रीनगर-बारामुला राजमार्ग पर स्थित मीरगुंड दलदली भूमि का क्षेत्रफल एक सौ एकड़ था जिसमें 20 एकड़ अतिक्रमित है।

गंदरबल जिले में श्रीनगर की सीमा से सटे शालबग का कुल क्षेत्रफल 250 एकड़ था, जिसमें से 12 एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं ने कब्जा कर लिया है।

उत्तर कश्मीर के सोपोर जिले में स्थित हैगाम का कुल क्षेत्रफल 1812 एकड़ था, जिसमें 252 एकड़ पर कब्जा कर लिया गया है।

घाटी के दक्षिण में पंपोर में चार छोटे-छोटे दलदली भूखंड हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 178 एकड़ था, लेकिन अब 150 एकड़ ही बच गया है।

इसी तरह उत्तर कश्मीर के बांदीपुर जिले में स्थित मालगाम दलदली भूमि का कुल क्षेत्रफल 1125 एकड़ था जो घटकर 775 एकड़ रह गया है।

और होकरसर की यह दलदली भूमि तो करीब 14 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी, जो सिकुड़कर 5-6 वर्ग किलोमीटर तक रह गई है। इसमें पानी का स्तर 12-14 फीट से घटकर अब कुछ इंचों तक सिमट गई है।

प्रदूषण के उच्च स्तर और अतिक्रमण ने यहां के प्राकृतिक वनस्पतियों पर कहर बरपाया है, जिससे हजारों किसानों को झटका लगा है।

अवांछित घास-फूसों के उगने और झेलम नदी में गाद जमने से मछलियों की वृद्धि, मखना और कमल के तनों जैसी सब्जियों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

होकरसर की देखभाल करने वाले एक वन्यजीव रक्षक इम्तियाज अहमद लोन इस बर्बादी के लिए झेलम के बाढ़ क्षेत्र को दोषी मानते हैं। उन्होंने कहा, “ये बड़ी मात्रा में गाद और गंदगियां लाते हैं।”

लोन ने कहा, “कुछ उद्योगों के अलावा घरेलू कचरे भी दलदली भूमि के आसपास फेके जाते हैं, जिससे यह पशुओं के चरने की स्थायी जगह बन गई है।”

पर्यावरणविद् शाह ने कहा कि घाटी में दूसरी बाढ़ 2014 से ज्यादा भयानक होगी। उस समय श्रीनगर कई सप्ताहों तक बाढ़ में डूबा रहा था।

उन्होंने कहा, “हमने बर्बादी के बीज बोए हैं तो अब कड़वे फल काट रहे हैं।”

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