शिमला, 8 अप्रैल (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शुक्रवार को अंग्रेजों के जमाने के कांगड़ा चाय उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए बहुआयामी उपाय अपनाने की वकालत की है।
वीरभद्र ने राज्य के चाय विकास बोर्ड की यहां अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि चाय उत्पादन क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है और इसका विस्तार करने की जरूरत है।
बैठक में मुख्यमंत्री को बताया गया कि श्रमिकों के अभाव में बहुतेरे चाय बागानों में खेती नहीं हो रही है।
सिंह ने कहा कि किसानों की समस्या वह भारतीय टी बोर्ड के सामने उठाएंगे और 10 एकड़ से छोटे बागानों वाले उत्पादकों के लिए चाय बागान के मशीनों पर सब्सिडी की मांग करेंगे।
बोर्ड सदस्यों द्वारा चाय उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का मॉडल अपनाए जाने के सुझाव पर सिंह ने कहा कि चाय उद्योग को मशीनीकरण के जरिए पुर्जीवित किया जाएगा।
कांगड़ा चाय का प्रचार करने के लिए राज्य में नवंबर में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया गया है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव उपमा चौधरी ने कहा कि छोटे और सीमांत चाय उत्पादकों को वित्तीय सहायता के लिए भारतीय टी बोर्ड के पास 7.20 करोड़ रुपये का एक शुरुआती प्रस्ताव भेजा गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में हर साल करीब नौ लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है।
कांगड़ा चाय को दार्जीलिंग चाय की श्रेणी के करीब माना जाता है और यह ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस (जीआई) ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के तहत पंजीकृत है।
इस क्षेत्र में पहली बार चाय की खेती कांगड़ा घाटी के पालमपुर पहाड़ों की तराई में 1849 में एक अंग्रेज द्वारा कैमेलिया चाय के साथ हुई थी।
1905 के भूकंप ने इस क्षेत्र के चाय बागानों और कारखानों को नष्ट कर दिया। इसके बाद अधिकतर यूरोपीय उत्पादकों ने अपने चाय बागान भारतीयों को दे दिए।
1997 के एक अनुमान के मुताबिक, राज्य में 2,312 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान हैं।