नई दिल्ली, 10 मई (आईएएनएस)| पिछले महीने छह से 12 अप्रैल के बीच के सप्ताह में पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डॉईऑक्साइड का स्तर 404.02 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) पहुंच गया, जो मानव इतिहास में सर्वाधिक है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के लिए कार्बन डाईऑक्साइड के मानक स्तर (350 पीपीएम) से यह 15 फीसदी अधिक है।
हवाई स्थित ‘मौना लोवा ऑब्जर्वेटरी’ (एमएलओ) के अनुसार, फरवरी, मार्च और अप्रैल महीने के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड का औसत स्तर 400 पीपीएम से अधिक रहा। इतिहास में पहली बार तीनों महीनों में कॉर्बन डाईऑक्साइड का सर्वाधिक स्तर दर्ज किया गया।
वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर ने नौ मई, 2013 को पहली बार 400 पीपीएम को छुआ।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा किए गए ‘कार्बन इन आर्कटिक रिजर्वायर्स वल्नरेबिलिटी एक्सपेरिमेंट’ के मुख्य जांचकर्ता चार्ल्स मिलर के अनुसार, “पिछले 10 लाख वर्षो में इस समय वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर 100 पीपीएम अधिक है। (संभव है यह स्तर पिछले 2.5 करोड़ वर्षो में सर्वाधिक हो)।”
मिलर ने कहा, “पृथ्वी के पर्यावरण में आए इस बदलाव का सबसे अहम पहलू यह है कि पिछले कुछ दशकों से कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में तेजी से इजाफा हो रहा है, अर्थात भविष्य में इसमें और तेजी से वृद्धि होगी।”
हवाई स्थित ऑब्जर्वेटरी एमएलओ 1958 से पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर पर नजर रहा है, जिसके अनुसार हर वर्ष इसके स्तर में 82.58 पीपीएम की वृद्धि हो जाती है।
भारत पर इसका असर :-
इंडियास्पेंड के मुताबिक, कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ता स्तर भारत के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण देश कृषि संकट से जूझ रहा है। इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि को जलवायु परिवर्तन का परिणाम माना जा रहा है।
भारत दुनिया में तीसरा सर्वाधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित करने वाला देश है।
पर्यावरण परिवर्तन पर 2014 में आई संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर का संबंध पिछले 35 वर्षो में महासागरीय और धरातलीय तापमान में वृद्धि समुद्र तल के बढ़ने से है।
कार्बन डाईऑक्साइड के बढ़ते स्तर का विशेष तौर पर भारत पर क्या असर होगा, इसका कोई आकलन मौजूद नहीं है।
आईपीसीसी की 2007 में आई एक रिपोर्ट में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के दावे तो विश्वसनीय साबित नहीं हुए। लेकिन अनेक अध्ययनों में बेमौसम बारिश और मौसम में असमय परिवर्तन की बात सामने आ चुकी है, जिसके कारण देश में किसानों, कृषि, अर्थव्यवस्था और नीतियों को लेकर संकट की स्थिति झेलनी पड़ रही है।
उत्सर्जन को लेकर भारत के आंकड़े हालांकि चिंतित करने वाले हैं।
भारत का प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन स्तर 1.9 मीट्रिक टन है, जो विश्व औसत के हिसाब से तीसरे स्थान पर है और चीन का चौथाई तथा अमेरिका का 1/10 है।
भारत जिस गति से औद्योगीकरण और नगरीकरण की ओर बढ़ रहा है, उसका वैश्विक तापमान वृद्धि में काफी असर है। भारत में दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 20 नगर हैं।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि भविष्य में अधिक से अधिक सौर ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है।
मोदी ने हाल ही में ‘टाइम’ पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा है, “मेरे खयाल से यदि आप दुनिया पर नजर डालें और जलवायु परिवर्तन को देखें तो दुनिया का जो हिस्सा प्राकृतिक नेतृत्व प्रदान कर सकता है, वह यही हिस्सा है।”
भारत इस मामले में गैर समझौताकारी वैश्विक दृष्टि अपना सकता है, लेकिन एमएलओ से मिले आंकड़ों को चेतावनी के तौर पर लिया जाना चाहिए।
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